1984 के लोकसभा चुनावों में केवल दो सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी आज देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है, अगर पार्टी के सदस्यों की संख्या को आधार माना जाए तो यह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को पीछे छोड़कर विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। भाजपा को खड़ा करने में राम जन्मभूमि आंदोलन का सबसे बड़ा योगदान रहा।
1996 में पहली बार भाजपा संसद में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी और उसने 13 दिन सरकार भी चलाई। 1998 में भाजपा की अगुवाई में NDA बना और एक साल सरकार चला सके। इसके एक साल बाद 1999 में भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत हासिल करके सत्ता में आई और अपना कार्यकाल पूर्ण किया। यह पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया।
2004 से भाजपा 10 साल संसद में मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर रही।
इसके बाद भाजपा का स्वर्णिम युग 2014 में शुरु हुआ। 2014 में भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा को जबरदस्त बहुमत मिला, इसके बाद पंजाब, दिल्ली और बिहार को छोड़कर लगभग हर राज्य में भाजपा ने सरकार बनाई।
आज भाजपा की 15 राज्यों में अपने दम पर सरकार है और 6 राज्यों में भाजपा सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार में है।
भाजपा का बढ़ता प्रभाव
यह भाजपा का प्रभाव ही है जिसकी वजह से 23 साल पुराने दुश्मन बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी को साथ आना पड़ा। 2 जून 1995 में स्टेट गेस्ट हाउस कांड से शुरु हुई दुश्मनी को 23 साल बाद भुलाना पड़ा, इनका श्रेय भाजपा के बढ़ते कदमों को ही दिया जाना चाहिए।
भाजपा के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए ही बिहार में एक दूसरे के कट्टर विरोधी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को साथ आना पड़ा तथा कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाना पड़ा।
भाजपा की बढ़ती ताकत के सामने अपने घटते कद की वजह से महाराष्ट्र में शिव सेना को अपना दशकों पुराना गठबंधन तोड़ना पड़ा क्योंकि शिव सेना भी हिंदुत्व के नाम पर आई थी और अब इसी मुद्दे पर उसे अपना वोट बैंक भाजपा की ओर आकर्षित होता लग रहा है।
क्या कारण है भाजपा के बढ़ने के
भाजपा के इस बढ़ते हुए कद के पीछे सबसे बड़ा कारण उसकी हिंदूवादी छवि माना जाता है। हिंदूवादी छवि होने के चलते ही बहुत से हिंदूवादी संगठन जैसे बजरंग दल, हिन्दू युवा वाहिनी, गौरक्षा दल और विश्व हिंदू परिषद भाजपा के लिए जमीनी स्तर पर काम करते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पीछे से भाजपा को चलाता है। समय समय पर आरएसएस भाजपा नेताओं, मंत्रियों यहाँ तक कि प्रधानमंत्री तक को संघ के कार्यालयों में बुलाकर सरकार के कामकाज की समीक्षा करता रहता है। यही नही आरएसएस भाजपा की भावी रणनीति तथा चुनावी प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भाजपा तथा अन्य दलों में यह सबसे बड़ा अंतर है कि उनके पास इस प्रकार के जमीनी स्तर पर काम करने वाले संगठनों का अभाव है।
भाजपा की सफलता का श्रेय उसके चुनावी प्रबंधन को भी मिलना चाहिए क्योंकि यह भाजपा का चुनावी प्रबंधन ही है जो उसने बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं की फौज तैयार कर रखी है। त्रिपुरा के चुनावों में तो भाजपा ने वोटर लिस्ट के हर एक पन्ने के लिए एक अलग टीम बना रखी थी।
इसके साथ ही भाजपा की सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भी दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री में खुद को प्रस्तुत करने की असिमित क्षमता है। उनके समर्थक उनके इस तरह दीवाने हैं कि वह जो कहते हैं लोग उसको सच मानने से रोक नही पाते। 2014 में लंबे चौड़े वादों से मिले अपार समर्थन से प्रधानमंत्री बनने के बाद, मतदाताओं की ढेरों उम्मीदों में उन्होंने खुद को दबने नही दिया। उन्होंने जनता से किये बड़े बड़े वादों को खुद के व्यक्तित्व के सामने बौना साबित कर दिया। लोग प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व के सामने उनके वादों को भूलते गए।
प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का आलम यह है कि देश इन दिनों बढ़ती महंगाई, बैंकों में घटते भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और चरमराई हुई अर्थव्यवस्था से परेशान है परंतु प्रधानमंत्री के समर्थकों को इस बात से कोई परेशानी नही है, उनके लिए प्रधानमंत्री आज भी वही 2014 वाले हीरो हैं जो 2014 में हर साल 1 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा करके आये थे।
कहा जाता है कि जब ताकत बढ़ती है तो घमंड अपने आप आ जाता है। आज कल ऐसा ही कुछ भाजपा में भी देखने को मिल रहा है। इसे घमंड कहें, सत्ता का लोभ कहें, लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कहें या राजनीतिक निपुणता, चुनावी प्रबंधन।
सत्ता पाने के लिए भाजपा साम, दाम, दंड व भेद सभी नियमों का पालन कर रही है। जहाँ बहुमत मिलता है वहाँ तो सरकार बना ही रही है परंतु जहाँ पार्टी बुरी तरह पिछड़ रही है जैसे मेघालय में पार्टी ने महज 2 सीटें लाकर भी सरकार बना ली।
गोआ में भाजपा को 13 सीटें मिली थी जबकि प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस 17 सीटें लेकर भी भाजपा की रणनीति के आगे हार गई और सरकार नही बना पायी ऐसा ही मणिपुर में हुआ कांग्रेस 28 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी थी परंतु भाजपा 21 सीटें जीतकर ही सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है। इन दोनों राज्यों में हैरान करने वाली बात यह है कि राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए पहले बड़े दल को न्योता नही दिया।
1996 में पहली बार भाजपा संसद में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी और उसने 13 दिन सरकार भी चलाई। 1998 में भाजपा की अगुवाई में NDA बना और एक साल सरकार चला सके। इसके एक साल बाद 1999 में भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत हासिल करके सत्ता में आई और अपना कार्यकाल पूर्ण किया। यह पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया।
2004 से भाजपा 10 साल संसद में मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर रही।
इसके बाद भाजपा का स्वर्णिम युग 2014 में शुरु हुआ। 2014 में भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा को जबरदस्त बहुमत मिला, इसके बाद पंजाब, दिल्ली और बिहार को छोड़कर लगभग हर राज्य में भाजपा ने सरकार बनाई।
आज भाजपा की 15 राज्यों में अपने दम पर सरकार है और 6 राज्यों में भाजपा सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार में है।
भाजपा का बढ़ता प्रभाव
यह भाजपा का प्रभाव ही है जिसकी वजह से 23 साल पुराने दुश्मन बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी को साथ आना पड़ा। 2 जून 1995 में स्टेट गेस्ट हाउस कांड से शुरु हुई दुश्मनी को 23 साल बाद भुलाना पड़ा, इनका श्रेय भाजपा के बढ़ते कदमों को ही दिया जाना चाहिए।
भाजपा के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए ही बिहार में एक दूसरे के कट्टर विरोधी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को साथ आना पड़ा तथा कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाना पड़ा।
भाजपा की बढ़ती ताकत के सामने अपने घटते कद की वजह से महाराष्ट्र में शिव सेना को अपना दशकों पुराना गठबंधन तोड़ना पड़ा क्योंकि शिव सेना भी हिंदुत्व के नाम पर आई थी और अब इसी मुद्दे पर उसे अपना वोट बैंक भाजपा की ओर आकर्षित होता लग रहा है।
क्या कारण है भाजपा के बढ़ने के
भाजपा के इस बढ़ते हुए कद के पीछे सबसे बड़ा कारण उसकी हिंदूवादी छवि माना जाता है। हिंदूवादी छवि होने के चलते ही बहुत से हिंदूवादी संगठन जैसे बजरंग दल, हिन्दू युवा वाहिनी, गौरक्षा दल और विश्व हिंदू परिषद भाजपा के लिए जमीनी स्तर पर काम करते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पीछे से भाजपा को चलाता है। समय समय पर आरएसएस भाजपा नेताओं, मंत्रियों यहाँ तक कि प्रधानमंत्री तक को संघ के कार्यालयों में बुलाकर सरकार के कामकाज की समीक्षा करता रहता है। यही नही आरएसएस भाजपा की भावी रणनीति तथा चुनावी प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भाजपा तथा अन्य दलों में यह सबसे बड़ा अंतर है कि उनके पास इस प्रकार के जमीनी स्तर पर काम करने वाले संगठनों का अभाव है।
भाजपा की सफलता का श्रेय उसके चुनावी प्रबंधन को भी मिलना चाहिए क्योंकि यह भाजपा का चुनावी प्रबंधन ही है जो उसने बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं की फौज तैयार कर रखी है। त्रिपुरा के चुनावों में तो भाजपा ने वोटर लिस्ट के हर एक पन्ने के लिए एक अलग टीम बना रखी थी।
इसके साथ ही भाजपा की सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भी दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री में खुद को प्रस्तुत करने की असिमित क्षमता है। उनके समर्थक उनके इस तरह दीवाने हैं कि वह जो कहते हैं लोग उसको सच मानने से रोक नही पाते। 2014 में लंबे चौड़े वादों से मिले अपार समर्थन से प्रधानमंत्री बनने के बाद, मतदाताओं की ढेरों उम्मीदों में उन्होंने खुद को दबने नही दिया। उन्होंने जनता से किये बड़े बड़े वादों को खुद के व्यक्तित्व के सामने बौना साबित कर दिया। लोग प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व के सामने उनके वादों को भूलते गए।
प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का आलम यह है कि देश इन दिनों बढ़ती महंगाई, बैंकों में घटते भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और चरमराई हुई अर्थव्यवस्था से परेशान है परंतु प्रधानमंत्री के समर्थकों को इस बात से कोई परेशानी नही है, उनके लिए प्रधानमंत्री आज भी वही 2014 वाले हीरो हैं जो 2014 में हर साल 1 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा करके आये थे।
कहा जाता है कि जब ताकत बढ़ती है तो घमंड अपने आप आ जाता है। आज कल ऐसा ही कुछ भाजपा में भी देखने को मिल रहा है। इसे घमंड कहें, सत्ता का लोभ कहें, लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कहें या राजनीतिक निपुणता, चुनावी प्रबंधन।
सत्ता पाने के लिए भाजपा साम, दाम, दंड व भेद सभी नियमों का पालन कर रही है। जहाँ बहुमत मिलता है वहाँ तो सरकार बना ही रही है परंतु जहाँ पार्टी बुरी तरह पिछड़ रही है जैसे मेघालय में पार्टी ने महज 2 सीटें लाकर भी सरकार बना ली।
गोआ में भाजपा को 13 सीटें मिली थी जबकि प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस 17 सीटें लेकर भी भाजपा की रणनीति के आगे हार गई और सरकार नही बना पायी ऐसा ही मणिपुर में हुआ कांग्रेस 28 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी थी परंतु भाजपा 21 सीटें जीतकर ही सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है। इन दोनों राज्यों में हैरान करने वाली बात यह है कि राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए पहले बड़े दल को न्योता नही दिया।
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