Tuesday, July 24, 2018

तीन तलाक और भारत की समस्याएं

विश्व बैंक के ताजा आँकड़ों के अनुसार भारत विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। हमनें छठे स्थान पर पहुँचने के लिए फ्रांस को पीछे धकेला है और जल्दी ही ब्रिटेन को पीछे छोड़कर हम पांचवें स्थान पर आने वाले हैं।
विश्व बैंक के अनुसार भारत की जीडीपी 2.597 खरब डॉलर है जबकि फ्रांस की हमसे कम 2.582 खरब डॉलर है और हमारा अगला  प्रतिद्वंद्वी ब्रिटेन हमसे कुछ ही दूरी पर यानी 2.622 खरब डॉलर पर है। देश के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है और इसके लिए सभी देशवासी बधाई के पात्र हैं।

विश्व में हम छठे स्थान पर तो पहुंच गए लेकिन देश में अभी भी बहुत सी ऐसी समस्याएं हैं जिनसे पार पाना बहुत जरूरी है।
इन समस्याओं को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। आज मेरे इस ब्लॉग का यही मकसद है कि मैं अपने देशवासियों को देश की कुछ समस्याओं से अवगत करा सकूँ।
समस्याओं को मैंने दो वर्गों में विभाजित किया है।
1. वह समस्याएं जिन्हें सरकार असली समस्या मानती है।
आइये देखते हैं सरकार किन समस्याओं को देश की असली समस्या मानती है। काफी सोचने के बाद मुझे सिर्फ एक ही ऐसी समस्या मिली जिसे लेकर सरकार गंभीर है और जल्दी से जल्दी उसका समाधान चाहती है।
तीन तलाक - जी हाँ, सरकार की नज़र में आज की तारीख में अगर कोई समस्या है जिसकी वजह से सीमा पर लगातार घुसपैठ बढ़ती जा रही है, देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, शिक्षा का स्तर गिर रहा है, भुखमरी बढ़ी है, बच्चे कुपोषित हो रहें हैं, तो इस सब की एक वजह है, वह है तीन तलाक। इसलिए सरकार तीन तलाक के मुद्दे के समाधान के लिए इतनी प्रयत्नशील है क्योंकि डॉलर आज लगभग 70 के बराबर है और इसे 40 के स्तर तक लाना है तो सबसे पहले तीन तलाक का मुद्दा सुलझाना होगा।
सरकार इस समस्या को सुलझाने में इतनी गंभीर है अभी हाल ही में मानसून सत्र शुरू होने से पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को खत लिखकर महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने को कहा तो सरकार की ओर से जवाबी खत में महिला आरक्षण विधेयक पास कराने के लिए उससे पहले तीन तलाक बिल पास कराने की शर्त रखी।
सरकार इस बिल को पास कराने के लिए शायद इस लिए तत्पर है क्योंकि गुजरात के लगभग8 जिलों में बाढ़ के हालात बने हुए हैं और यह बिल संसद में पास हो जाता है तो बाढ़ का पानी अपने आप वापस जा सकता है।
आखिर तीन तलाक विधेयक में ऐसा क्या है, जो सरकार इसे पास कराने के लिए इतनी जद्दोजहद कर रही है।
तीन तलाक को कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया था, मतलब अब अगर कोई पति अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है तो कानूनी रूप से वह तलाक नहीं माना जायेगा।
अब सरकार का पक्ष देखिये, सरकार चाहती है कि जो पति अपनी पत्नी को तीन तलाक दे उसको कम से कम तीन साल की सज़ा का प्रावधान हो और वह अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता भी देगा। यही पर असली पेच है। सुप्रीम कोर्ट कहता है कि किसी ने अपनी पत्नी को तीन तलाक दिया तो वह तलाक नही माना जायेगा यानी वह दोनों पहले की तरह ही पति पत्नी हैं। ऐसी स्थिति में सरकार चाहती है कि पति को उठाकर जेल में डाल दिया जाए और पत्नी को बेसहारा कर दिया जाए और अब जब पति जेल में है तो वह पत्नी को बिना कमाए गुजारा भत्ता दे, वह भी उस अपराध के लिए जो कभी हुआ ही नही है क्योंकि संविधानिक रूप से वह अब भी पति पत्नी हैं उनके बीच कभी तलाक हुआ ही नही।

खैर इनके अतिरिक्त भी देश में छोटी छोटी समस्याएं है, जिन्हें मैं देश की वास्तविक समस्या मानता हूँ। उनमें से कुछ निम्न हैं-
1. साक्षरता दर- 2011 की जनगढना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 74.04% है। वर्ल्ड एटलस के अनुसार भारत साक्षरता दर के आधार पर विश्व में 159वें स्थान पर है। अफसोस होगा यह जानकर कि घाना, केन्या, यूगांडा, सूडान, इराक, ज़िम्बाब्वे, ईरान, लेबनान, लीबिया जैसे देश साक्षरता दर में हमसे आगे हैं।
आल ग्लोबल मोनिटरिंग रिपोर्ट 2014 के अनुसार देश में लगभग 28.7 करोड़ लोग निरक्षर हैं, विश्व के कुल निरक्षर लोगों का 37% हमारे देश भारत में है।
आज भी देश में 40% बच्चे आठवीं कक्षा पास करने से पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं।
यूनिसेफ के मुताबिक भारत के 8 करोड़ बच्चे कभी स्कूल जा ही नही पाते।
29% स्कूलों में मैथ तथा साइन्स के अध्यापक ही नही हैं।
अध्यापक तो बाद की बात है, देश के 85% गांवों में सेकंडरी स्कूल तक नही हैं।
एचआरडी मंत्रालय के मुताबिक देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में करीब 40 % शिक्षकों के पद रिक्त हैं।
2. बेरोजगारी- अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन की नवीनतम रिपोर्ट 'वर्ल्ड एम्प्लायमेंट एंड सोशल आउटलुक' में वर्ष 2017 तथा 2018 में भारत की बेरोजगारी दर 3.5% बढ़ने का अनुमान है। रिपोर्ट के अनुसार देश में बेरोज़गारों की संख्या वर्ष 2017 के 17.8 मिलियन की बजाय वर्ष 2018 में 18.3 मिलियन रहने की उम्मीद है।
3. स्वास्थ्य सेवाएं- नेशनल हैल्थ प्रोफाइल 2015 के अनुसार देश में प्रति 61000 लोगों पर औसतन 1 सरकारी अस्पताल है और प्रति 1883 लोगों पर सरकारी अस्पताल के सिर्फ 1 बैड का औसत है। देश में प्रति 1700 लोगों पर औसतन 1 डॉक्टर है।
भारत अपनी जीडीपी का महज 1% सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर ख़र्च करता है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सभी देशों को जीडीपी का 5% स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करना चाहिए।
4. बाढ़- हर साल मानसून आते ही देश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिससे लाखों लोग सीधे प्रभावित होते हैं। दुनिया में बाढ़ की वजह से होने वाली प्रत्येक पांचवीं मौत भारत में होती है। राज्यसभा के अनुसार वर्ष 2005 में बाढ़ से 1455 मौतें हुई, वर्ष 2008 में 2876, वर्ष 2014 में 1968 तथा वर्ष 2017 में 2015 मौतें बाढ़ से हुई।
मुम्बई दुनिया के उन चुनिंदा शहरों में से एक है जिसकी रफ्तार कभी नही थमती लेकिन मानसून के दिनों में भारत की यह आर्थिक राजधानी समुद्र बन जाती है।
5. गिरता रुपया - रुपया अब तक के निचले स्तर 69.12 तक पहुंच गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कहा था कि रुपये और केंद्र सरकार के बीच प्रतियोगिता चल रही है कि कौन ज़्यादा गिरेगा। खैर अब दिल्ली में खुद मोदी जी की सरकार है तो पता नहीं कि रुपये की प्रतियोगिता अब किस से चल रही है।
6. जनसंख्या- विश्व बैंक के अनुसार 2016 में भारत की जनसंख्या 132.42 करोड़ थी। जनसंख्या के मामले में हम दुनिया मे दूसरे नम्बर पर हैं जबकि क्षेत्रफल के हिसाब से विश्व में हम सातवें स्थान पर हैं। चीन हमसे क्षेत्रफल में तीन गुना बड़ा है लेकिन उसकी आबादी हमसे महज पांच करोड़ ज़्यादा है।
7. विदेशी नीति- प्रधानमंत्री के लगभग आधी से ज़्यादा दुनिया घूमने के बाद भी हमारी विदेश नीति अनिश्चित है। चीन हमें कभी भी आँखें दिखा देता है, चीन की वजह से ही हम मसूद को आतंकी सूची में नही डलवा पाए और उन दिनों को भी ज़्यादा वक़्त नही हुआ जब चीन ने हमारी सीमा के 19 किमी अंदर टेंट लगाकर चीन का झंडा लगा दिया था। विदेश नीति की कमजोरी की ही वजह है कि कभी हमें अमेरिकी दवाब में ईरान से तेल आयात कर करना पड़ता है और कभी रूस से रक्षा सौदे टालने पड़ते हैं। इसे कमजोर विदेश नीति ही कहेंगे बांग्लादेश जैसे छोटे देश के दवाब में आकर हमें ब्रिटिश सांसद का वीजा रदद् करना पड़ता है और हमारा सबसे भरोसेमंद दोस्त रूस पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास कर रहा है, ऐसा हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि रूस पाकिस्तान से मिल सकता है। यह सब हमारी विदेश नीति की ही तो असफलता है।
8. किसान आत्महत्या- नेशनल क्राइम रिकॉर्ड बयूरो के अनुसार वर्ष 2014 में देश में 5650 किसानों ने आत्महत्या की है। आत्महत्या का यह आंकड़ा 2004 में 18241 पर था।
देश में होने वालों कुल आत्महत्याओं का 11.2 % किसान होते हैं। ऐसे कौन से कारण हैं जिनकी वजह से किसानों को आत्महत्या करनी पड़ती है? शायद किसी भी सरकार ने यह जानने का प्रयास आज तक नही किया?
9. बिजली- दूर की बात छोड़ो जिस शहर में मैं रहता हूँ, वहां इन दिनों मुश्किल से 6-8 घण्टे बिजली का औसत है और मैं देश के एक संम्पन्न क्षेत्र में रहता हूं। यहाँ कारोबार उद्योग-धंधे अच्छी तरह से फले फुले हुए हैं। जब देश के संम्पन्न क्षेत्र का हाल यह है तो पिछड़े हुए क्षेत्रों का क्या हाल होगा।
10. ट्रेनें- आज शायद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है परन्तु जो ट्रेनें मौजूदा वक्त में चल रही हैं उनमें भीड़ इस कदर है कि इसकी तो बात ही हम नही करते परन्तु समय पर जरूर बात करना चाहूंगा। देश में बहुत कर ऐसी ट्रेनें हैं जो समय पर चल रही हैं। कुछ दिन पहले तो हालात यह थे कि ट्रेनें अपने ठीक दिन से भी एक दो दिन पीछे चल रहीं थीं।
यह कुछ समस्याएं मेरे दिमाग में आई तो मैंने आपके सामने रख दीं परन्तु यह सब सरकार के लिए समस्या की श्रेणी में आती हैं या नही , यह तो भविष्य ही बताएगा। फिलहाल सरकार की प्राथमिकता वाली समस्या से तो आप रूबरू हो ही गए हैं।

Friday, May 4, 2018

Jinnah at AMU

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स यूनियन हॉल में लगी जिन्ना की तस्वीर का मामला शांत होता नही दिख रहा। यह मामला पिछले 2 मई से गरमाया हुआ है आगे भी इस पर राजनीति होने की पूरी संभावना है।
क्या है पूरा मामला
इस मामलें की शुरुआत भाजपा सांसद सतीश गौतम के ट्वीट से हुई। उन्होंने ट्वीटर पर कहा कि ऐसी क्या मजबूरी है जो एएमयू प्रशासन को विश्वविद्यालय में पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर लगानी पड़ रही है। सतीश गौतम का कहना है कि उन्होंने इस बाबत एएमयू के कुलपति को पत्र लिख कर एएमयू के छात्रसंघ कार्यलय में लगी जिन्ना की तस्वीर पर आपत्ति जताई और इसको हटाने की मांग की, जबकि इस संबंध में विश्विद्यालय का कहना है कि इस बाबत उन्हें कोई पत्र नही मिला।
सतीश गौतम के ट्वीट के बाद हिन्दू जागरण मंच , एबीवीपी  और हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने विश्वविद्यालय से जिन्ना की तस्वीर हटाने के लिए मुख्य गेट के बाहर बबाल काटा, जिन्ना का पुतला फूंकने का प्रयास किया और जय श्री राम, भारत माता की जय और बंदेमातरम जैसे नारे लगाते हुए, हाथों में पत्थर और बेल्ट लिए परिसर में घुसने की कोशिश की। इसके बाद हिन्दू जागरण मंच के कार्यकर्ता छात्रों से भिड़ गए। इसके विरोध में छात्र थाने जाने लगे, थाने जा रहे छात्रों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया जिसमें एएमयू के छात्रसंघ अध्यक्ष के साथ अन्य छात्रों को काफी चोट आई जिससे छात्र भड़क गए और बाब ए सय्यद गेट पर धरने पर बैठ गए।
छात्र नेताओं की और से भाजपा सांसद सतीश गौतम, संघ, विहिप, हिन्दू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं और सीओ सिटी के खिलाफ तहरीर दी और गिरफ्तारी न होने तक धरना जारी रखने का ऐलान किया। इसके बाद जिलाधिकारी ने घटनाक्रम की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं।
तस्वीर का इतिहास
भारत विभाजन से पहले 1938 में मोहम्मद अली जिन्ना को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मानद सदस्यता प्रदान की गई थी, उसी दौरान यह तस्वीर लगायी गयी थी।
कौन थे मोहम्मद अली जिन्ना
मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान का संस्थापक माना जाता है, पाकिस्तान में उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा दिया जाता है। भारतीय राजनीति में जिन्ना कांग्रेस के एक बड़े नेता के तौर पर जाने जाते थे। जिन्होने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर देते हुए मुस्लिम लीग के साथ लखनऊ समझौता करवाया था। वे अखिल भारतीय होम रूल लीग के प्रमुख नेताओं में गिने जाते थे। काकोरी कांड के चारो मृत्यु-दण्ड प्राप्त कैदियों की सजायें कम करके आजीवन कारावास में बदलने के लिए सेण्ट्रल कौन्सिल के ७८ सदस्यों ने तत्कालीन वायसराय व गवर्नर जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक लिण्डले वुड को शिमला जाकर हस्ताक्षर युक्त मेमोरियल दिया था जिस पर प्रमुख रूप से पं॰ मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, एन॰ सी॰ केलकर, लाला लाजपतराय आदि ने हस्ताक्षर किये थे।
जिन्ना ने बाल विवाह निरोधक  कानून बनाने और साण्डर्स समिति के गठन के लिए काम किया, जिसके तहत देहरादून में भारतीय मिलिट्री अकादमी की स्थापना हुई।
प्रतिक्रियाएं
इस संबंध में उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य का कहना है कि मोहम्मद अली जिन्ना एक महान व्यक्ति थे, उन्होंने राष्ट्र निर्माण में योगदान दिया, उन पर उंगली उठाना गलत बात है।

पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि इस घटिया राजनीति में मुझे मत घसीटीए, ये बहस नेताओं के लिए ही रहने दो।

एएमयू छात्रसंघ अध्यक्ष मशकूर अहमद का कहना है कि जिन्ना की तस्वीर एक ऐतिहासिक तथ्य है और हम इतिहास को बदलने में यकीन नही रखते। भारत विभाजन से पहले 1938 में जिन्ना को मानद उपाधि प्रदान की गई थी, उसी दौरान यह तस्वीर लगाई गई थी। आरएसएस के इशारे पर यह प्रकरण उठाया गया है ताकि कर्नाटक और आगामी लोकसभा चुनावों में धुर्वीकरण किया जा सके और हॉल में जिन्ना की लगी तस्वीर का यह मतलब नही है कि छात्र जिन्ना से प्ररेण लेते हैं।

2005 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष नेता बता चुके हैं।

Friday, April 13, 2018

बेटी के अपमान में, बीजेपी मैदान में

पिछले काफी दिनों से एक नारा देश में काफी लोकप्रिय हो रहा है वह है बेटी के सम्मान में, बीजेपी मैदान में। पिछले एक दो महीनों से इस नारे में अप्रत्याशित बदलाव हुआ है, अब नया नारा 'बेटी के अपमान में, बीजेपी मैदान में' ने पुराने नारे का स्थान ले लिया है।
नारा बदला भी क्यों न जाये क्योंकि पिछले दो तीन महीनों में देश मे बलात्कार के मामलों की बाढ़ सी आ गयी है।
लेकिन देश में बलात्कार के दो ऐसे मामले भी हुए हैं, जिसने देश की क्षवि को देश में ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व में कलंकित किया है। पहला मामला जम्मू कश्मीर के कठुआ का है और दूसरा उत्तर प्रदेश के उन्नाव का । इन दोनों मामलों ने देश की आत्मा को झकझोर दिया है।
इन दोनों मामलों के अतिरिक्त भी कुछ ऐसे मामले हैं, जो पूरी तरह से देश के सामने नही आ सके।
देखते है ऐसे कुछ मामलों को
1 अप्रैल, मेरठ- मेरठ के फलादवा कस्बे में 6 साल की बच्ची के साथ गैंगरेप करके हत्या कर दी गयी। फलादवा कस्बे के मोहल्ला जुड़ावाना निवासी बच्ची कस्बे में लगे मेले को देखने के लिए गयी थी। जहाँ दो दरिंदों ने उसे अगवा करके उसके साथ गैंगरेप किया।
1 अप्रैल, मुरादाबाद- मुरादाबाद के डिलारी में दो युवकों ने एक महिला के साथ गैंगरेप किया और उसकी वीडियो भी बनाई।
1 अप्रैल, गाज़ियाबाद- गाज़ियाबाद के लोनी में 26 साल के जितेन्द्र ने आठ साल की बच्ची से रेप किया, हालांकि रेप के आरोपी को पब्लिक ने पकड़ लिया और उसकी पिटाई की जिससे मौके पर ही आरोपी की मौत हो गयी।
3 अप्रैल, मुरादाबाद- मुरादाबाद के भोजपुर क्षेत्र में एक युवक ने एक युवती से रेप किया। काफी जद्दोजहद के बाद भी पुलिस ने युवक को नही पकड़ा, इससे मायूस होकर युवती ने ट्रेन से कटकर अपनी जान दे दी।
4 अप्रैल, रामपुर- रामपुर के शाहबाद क्षेत्र की किशोरी से गांव के ही संजय और गोविंदा नाम के युवकों ने रेप किया, जब किशोरी सुबह में शौच को गई थी।
4 अप्रैल, रामपुर- रामपुर के टांडा में तीन साल की मासूम बच्ची को पड़ोसी युवक अंकुर ने बहला कर अपने घर बुलाया और उसके साथ रेप किया। जब बच्ची रोने लगी तो आरोपी उसे संदूक में बंद करके भाग गया।
4 अप्रैल, वाराणसी- लाल बहादुर शास्त्री अंतराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर तैनात एक निजी एयरलाइन्स की महिला कर्मी के साथ एयरपोर्ट पर तैनात निजी अस्पताल के डॉ आशुतोष आस्थान और एयरपोर्ट पर ग्राउंड हैंडलिंग स्टाफ सप्लाई करने वाली एक कंपनी का मैनेजर सत्येंद्र सिंह ने अपने साथियों के साथ गैंगरेप किया।
5 अप्रैल, बरेली- स्कूल से घर जा रही दशवीं की छात्रा को वैन में खींचकर रेप की कोशिश।
6 अप्रैल, अमरोहा- आज का दिन अमरोहा को झकझोरने वाला था। तीन मासूम बच्चियों सहित रेप के चार मामले अमरोहा के अलग अलग हिस्सों से सामने आए।
6 अप्रैल, मुरादाबाद- मुरादाबाद के ठाकुरद्वारा क्षेत्र में रिंकू नाम के युवक ने अपने दो साथियों के साथ एक युवती से दुष्कर्म किया ।
10 अप्रैल, रामपुर- रामपुर के मिलक में तीन युवकों विक्की, सर्वेश और संजय ने मोहल्ले की किशोरी को घर पर अकेली पा कर उसके साथ गैंगरेप किया।
11 अप्रैल, मुरादाबाद- भोजपुर क्षेत्र में एक सरकारी स्कूल में तैनात शिक्षिका के साथ गांव के प्रधान ने स्कूल में दुष्कर्म की कोशिश की। पुलिस से शिकायत करने पर कार्यवाही न होने पर शिक्षिका ने जहर खा कर जान देने की कोशिश की।
11 अप्रैल, संभल- संभल के गुन्नौर क्षेत्र में दो युवकों ने सात साल की बच्ची के साथ गैंगरेप किया। बच्ची के साथ ऐसा बहशीपन किया गया कि बच्ची खून से लथपथ हो गयी, बच्ची को गंभीर हालत में अलीगढ़ रेफर किया गया।
12 अप्रैल, संभल- संभल के कमलपुर सराय मोहल्ले में युवक ने तमंचे के बल पर छठी की छात्रा के साथ रेप किया।
12 अप्रैल, संभल- संभल के नरौली क्षेत्र में दुष्कर्म में नाकाम युवक अंकित ने किशोरी के ऊपर मिटटी का तेल डालकर आग लगाई, किशोरी की हालत गंभीर बनी हुई है।
यह महज अप्रैल के मामलें हैं और एक वारणसी का मामला छोड़कर सभी मामले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश देश का बहुत छोटा सा हिस्सा है, आप अनुमान लगा सकते है कि सम्पूर्ण देश में क्या हाल होगा। उत्तर प्रदेश और देश में उन्ही लोगों की सरकार है जो बेटी बचाओ का नारा देतें हैं।

आइये अब देखते हैं देश की आत्मा को झकझोरने वाले कठुआ और उन्नाव के मामलों को।
कठुआ मामला
कठुआ मामले की चार्जशीट से इस बात का खुलासा हुआ है कि आठ साल की बच्ची आसिफा को कठुआ जिले के एक गांव में स्थित मंदिर में एक हफ्ते तक नशीली दवा देकर रखा गया और छह लोगों द्वारा उसका गैंगरेप किया गया। इस चार्जशीट में जो सबसे बड़ा खुलासा हुआ है वह यह है कि आठ साल की बच्ची के साथ गैंगरेप और उसकी हत्या एक सोची समझी साजिश का हिस्सा थी।
कठुआ स्थित रासना गांव में मंदिर के सेवादार साँझीराम को अपहरण, बलात्कार और हत्या के पीछे मुख्य साजिशकर्ता बताया गया है।
साँझीराम के साथ विशेष पुलिस अधिकारी दीपक खजुरिया और सुरेंद्र वर्मा , साँझीराम का दोस्त प्रवेश कुमार, साँझीराम का बेटा और भतीजा इस मामले में शामिल थे।
बच्ची अल्पसंख्यक बकरवाल समुदाय से सम्बंधित थी, साँझीराम बकरवाल समुदाय को गांव से निकालना चाहता था इसलिए उसने बकरवाल समुदाय की बच्ची का अपहरण करके उसके साथ घिनोनी हरकत करने की साज़िश रची।
चार्जशीट के मुताबिक इन सब लोगों ने बच्ची को नशीली दवा खिलाकर एक हफ्ते तक कैद रखकर उसके साथ लगातार रेप किया। एक हफ्ते बाद जब बच्ची को मारने के लिए पास के जंगल ले गए। मारने के वक़्त दीपक खजुरिया जंगल पहुंचा और बच्ची को मारने से मना किया, उसने कहा बच्ची को मारने से पहले वह एक बार और उसके साथ रेप करना चाहता है। इस तरह उन्होंने बच्ची को मारने से पहले एक बार फिर उसके साथ रेप किया और फिर पत्थर से उसका सिर कुचलकर उसकी हत्या कर दी।
चार्जशीट में उप निरीक्षक आनंद दत्त और कॉन्स्टेबल तिलक राज भी चार लाख रुपये लेकर अहम सबूत नष्ट करने के लिए नामजद हैं।
उन्नाव मामला
उन्नाव में एक युवती ने आरोप लगाया है कि भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने अपने भाई तथा समर्थकों के साथ मिलकर उसके साथ बलात्कार किया। थाने में विधायक के रसूख की वजह से उसकी रिपोर्ट नही लिखी जा सकी। विरोध करने पर युवती के पिता के साथ मारपीट की गई और मारपीट के आरोप में उसके पिता के खिलाफ मुकदमा लिखा कर जेल भेज दिया गया। युवती मदद मांगने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास पहुँची। मदद न मिलने पर उसने मुख्यमंत्री आवास के बाहर आत्मदाह करने की कोशिश की। इसी वजह से मामला सुर्खियों में आ पाया। उत्तर प्रदेश सरकार पर आरोपी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने का दवाब बढा इसलिए आरोपी विधायक ने मामला वापस लेने के लिए युवती के पिता पर दवाब बनाया और पिटाई कराई, जिससे युवती के पिता की जेल में ही मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अधिक पिटाई से आंत फटने की वजह युवती के पिता की मौत का कारण बनी।
अब इस मामले में रिपोर्ट दर्ज हो गयी है परंतु विधायक की गिरफ्तारी नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार के मुताबिक विधायक के खिलाफ सबूत नहीं है इसलिए गैरजमानती धाराओं में केस दर्ज होने पर भी उसकी गिरफ्तारी नहीं कि है।

दिल को दहला देने वाली घटनाएं हैं दोनों, पहली से तो रूह तक कांप जाती है।
क्या होगा इस सभ्य समाज का??
क्या औरत महज हवस मिटाने का साधन मात्र रह गयी है??

Thursday, March 22, 2018

एकता की नई मिसाल, चमन उर्फ़ रिज़वान

हिंसा के इस दौर में भी देश में कहीं न कहीं से एकता और सौहार्द की मिसालें सामने आती रहती हैं। एकता की इन्ही मिसालों से देश में गंगा जमुनी तहजीब बनी हुई है। अभी कुछ ही दिनों पहले होली पर लखनऊ में होली के जुलूस की वजह से मुस्लिम समाज के लोगों ने जुमे की नमाज़ का वक़्त थोड़ा आगे बढ़ा लिया था ताकि होली का जुलूस शांतिपूर्ण ढंग से पूरा हो सके।
अब नई मिसाल उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से सामने आई है। यहाँ अजीबोगरीब मामला सामने आया, इस मामले ने संत कबीर दास जी की याद दिला दी।
मुरादाबाद में मानसिक रूप से कमजोर एक युवक की मृत्यु हो गई। मृत्यु होने के बाद हिन्दू और मुसलमान दोनों समाज के लोग उसका अपने धार्मिक तरीकों से अंतिम सं
स्कार करना चाहते थे। मामला इतना बढ़ गया कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दखल देना पड़ा। बड़ी मशक्कत के बाद 10 घण्टे बाद मामला सुलझा और उस युवक का दोनों धर्मो के मिले जुले तरीकों से अंतिम संस्कार किया गया।
क्या था पूरा मामला
2014 में मुरादाबाद शहर की ईदगाह के पास एक मानसिक रूप से कमजोर युवक मिला था। युवक का पता चलने पर शहर के मोहल्ला डबल फाटक निवासी ज्वाला सैनी ने उस युवक को अपना बेटा चमन बताया जो 2009 में घर से लापता हो गया था परंतु इस बात पर विवाद तब बढ़ा जब शहर के ही मोहल्ला असालतपुर निवासी सुब्हान ने युवक को अपना भाई रिज़वान बताया। इस मामलें में उस वक़्त काफी विवाद हुआ था परंतु पुलिस ने स्थायी समाधान खोजने की जगह दोनों पक्षों में समझौता करा दिया कि ज्वाला सैनी और सुब्हान दोनों के परिवार संयुक्त रूप से उस युवक की देखभाल करेंगे। तभी से चमन उर्फ रिज़वान दोनों परिवारों में रह रहा था। चमन उर्फ रिज़वान की वजह से दोनों परिवारों के बीच भी एक संम्बंध बन गया था।
अब चमन उर्फ रिज़वान काफी दिनों आए बीमार चल रहा था, बीमारी की वजह से ही उसकी मौत हो गई। जब मौत हुई तो वह ज्वाला सैनी के घर पर ही था। मौत की खबर मिलने के बाद सुब्हान का परिवार पहुंचा। उन्होंने जा कर देखा तो हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार उसके अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी। इसका सुब्हान के परिवार ने विरोध किया तो मामला बढ़ गया और दोनों पक्ष आमने सामने आ गए। दोनों ही पक्ष अपने अपने तरीके से रिज़वान का अंतिम संस्कार करना चाहते थे। मामला बढ़ने पर पुलिस तथा सिटी मजिस्ट्रेट को आला अधिकारियों के साथ हस्तक्षेप करना पड़ा। करीब दस घंटे की मशक्कत के बाद मामला सुलझा। उसे ज्वाला सैनी के घर से ही अर्थी पर ले जाया गया परंतु उस का ग़ुस्ल इस्लामी तरीके से किया गया। अल्लाह हु अकबर और घंटो की सदाओं में उसकी जनाजे की नमाज़ अदा की गई और दफन कर दिया गया परंतु दफन कब्रस्तान में नही शमशान में हुआ। माहौल इतना सौहार्दपूर्ण था कि अर्थी को एक ओर तो टीका लगाये और दूसरी ओर टोपी ओढ़े लोग कंधा दे रहे थे।

Saturday, March 17, 2018

रोहिंग्या मुसलमानों पर ज़ुल्म करने के म्यांमार के कारण

रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ चले म्यांमार सरकार के बर्बर अभियान के बारे में तो सभी जानते हैं। हाल ही में इनके बारे में नया खुलासा हुआ है। खुलासा यह हुआ है कि जब म्यांमार ने रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निकाला था तो उस वक़्त ये तर्क दिया था कि रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के नागरिक नही हैं इसलिए इन्हें देश से निकाला जा रहा है।
कुछ ही दिन पूर्व एमनेस्टी इंटरनेशनल ने म्यांमार के रखाइन प्रान्त की सेटेलाइट से ली हुई तस्वीरें जारी की थीं, इनमें दिखाया गया था कि म्यांमार के सभी इलाकों से रोहिंग्या बस्तियों का नामोनिशान मिटा दिया गया है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा ताज़ा जारी की गई तस्वीरों से पता चलता है कि रोहिंग्या बस्तियों को खत्म करने के बाद म्यांमार ने इन स्थानों पर अपने सैन्य अड्डे विकसित कर लिए हैं।
गौरतलब है कि म्यांमार सरकार ने बांग्लादेश की सरकार से वहाँ रह रहे लगभग सात लाख रोहिंग्या मुसलमानों को अगले साल अपने देश वापस लेने का समझौता किया है परंतु म्यांमार के इस तरह सैन्य अड्डे बनाने से उसकी मंशा पर संदेह होता है कि म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों को फिर वापस लेना चाहता है। इससे पहले म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। पिछले दो सालों से रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार की सरकार और सेना द्वारा सताया जा रहा था। बीते साल यह संघर्ष इतना बढ़ा कि रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार छोड़कर भागना पड़ा। लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश में शरण लेनी पड़ी और लगभग 40 हज़ार रोहिंग्या मुसलमान भारत में शरण लिए हुए हैं।
टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार एमनेस्टी इंटरनेशनल की नयी तस्वीरों से यह साबित हुआ है कि रखाइन प्रान्त का पुनर्निर्माण बहुत ही गोपनीय ढंग से किया जा रहा है। रखाइन के आखरी तीन सैन्य अड्डे इसी साल बनाए गए हैं, जबकि अभी कई सैन्य अड्डे निर्माणाधीन हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि म्यांमार सरकार द्वारा कब्ज़े में ली गई ज़मीन पर उन्ही सैन्य बलों के लिए नए अड्डे बनाए जा रहे हैं जिन्होंने मानवता के खिलाफ जा कर रोहिंग्या मुसलमानों पर ज़ुल्म ढाया था।

कौन हैं रोहिंग्या???
रोहिंग्या पश्चिमी म्यांमार के रखाइन प्रान्त में रहने वाली एक जाति है, जो धार्मिक रूप से मुसलमान हैं। ये लोग बर्मा की भाषा की जगह ज़्यादातर बंगाली भाषा बोलते हैं। ये पीढ़ियों से म्यांमार में रह रहे हैं लेकिन अब म्यांमार इनको अवैध प्रवासी मान रहा है, जो कोलोनियल शासन के दौरान म्यांमार में आ कर बस गए थे। म्यांमार के नागरिकता अधिनियम 1982 के अनुसार उन्ही रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार की नागरिकता मिल सकती है, जो ये साबित कर दें कि उनके पुर्वज 1823 से पहले से म्यांमार में रह रहे थे। इसलिए 1982 से म्यांमार ने रोहिंग्या मुसलमानों को अपना नागरिक मानने से इनकार कर दिया और उनके नागरिक अधिकार छीन लिए। तभी से रोहिंग्या मुसलमानों का सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है। म्यांमार के उनको नागरिक न मानने की वजह से उन्हें सभी तरह की सुविधाएं एवं अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। उसी वक़्त से रोहिंग्या मुसलमान अपने अधिकारों और नागिरकता को बहाल करने के लिए शांतिपूर्ण ढंग से मांग कर रहे हैं।

रोहिंग्या के विरुद्ध म्यांमार में कब परिवर्तन आए
2015 तक म्यांमार में सेना का शासन रहा है, इसके बाद 2015 में पहली बार म्यांमार में लोकतांत्रिक तरीके से सरकार बनी। सरकार की सर्वेसर्वा आंग सान सू की हैं, लेकिन नाममात्र के लिए हतिन क्याव को म्यांमार का राष्ट्रपति बना दिया गया है, क्योंकि कुछ संविधानिक प्रावधानों के चलते आंग सान सू की देश की राष्ट्रपति नही बन सकती थीं।
आंग सान सू की के सत्ता में आने के बाद देश में रोहिंग्या मुसलमानों पर संकट बढ़ गया। आंग सान सू की ने सुनियोजित तरीके से सेना द्वारा अभियान चलाकर दस लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निकाल दिया और सेना की इस कार्यवाही में हज़ारों की तादाद में रोहिंग्या मुसलमान मारे गए हैं। उनके साथ ऐसा बर्बर रवैया अपनाया गया कि जिस को देख कर किसी का भी मन विचलित हो सकता है। म्यांमार से निकाले गए रोहिंग्या
मुसलमान शरण के लिए काफी दिनों तक समुद्र में एक देश से दूसरे देश मदद मांगते रहे, परंतु लगभग सभी देशों ने अपनी सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने से मना कर दिया। सोच कर भी मन विचलित हो जाता है कि ये लोग महीनों तक नाव के सहारे समुद्र में ही रहे, इनमे से काफी की मौत भूख की वजह से भी हो चुकी है। बाद में बांग्लादेश, थाईलैंड, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया और भारत में इन्हें शरण मिली।
म्यांमार की सेना द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों पर इस कदर ज़ुल्म ढाया गया था कि संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार की सेना के इस अभियान को नस्ली सफाया बताया था।
म्यांमार की आंग सान सू की को शांति के क्षेत्र में अनेक अंतरास्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे परंतु रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ उनके इस अभियान के कारण ज़्यादातर पुरस्कार उनसे वापस ले लिए गए हैं।

Tuesday, March 13, 2018

श्रीलंका में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को बनाया निशाना

मध्य श्रीलंका के कैंडी जिले में मुस्लिम विरोधी दंगे भड़कने के बाद श्रीलंका में 10 दिन की आपातकाल की घोषणा कर दी गई थी। श्रीलंका की सरकार को यह कदम पिछले सोमवार को बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध एवं अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के बीच हुई सांम्प्रदायिक झड़पों के बाद उठाना पड़ा। श्रीलंका में सिंहली बौद्ध बहुसंख्यक तादाद में हैं, श्रीलंका में इनकी आबादी लगभग 75 प्रतिशत है जबकि मुस्लिम महज 10 प्रतिशत हैं।
इन दंगों में अब तक 2 लोगों की जान जा चुकी है, 20 गम्भीर रूप से घायल हैं, 200 से ज़्यादा मुसलमानों की दुकानों और घरों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया गया है इसके अतिरिक्त 11 मस्जिदों को पूरी तरह तोड़ दिया गया है।
क्यों भड़का दंगा
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक निजी विवाद में तीन मुस्लिम युवकों ने एक सिंहली बौद्ध की हत्या कर दी थी, जिसकी वजह से यह हिंसा फैली।
हिंसा की असली वजह
हिंसा की असली वजह मीडिया में आई ख़बरों के बिल्कुल विपरीत है। श्रीलंका में फैले मुस्लिम विरोधी दंगो की असली वजह है इसका मुख्य आरोपी। मुख्य आरोपी जिसका नाम अमित वीरासिंहें है। अमित वीरासिंहें अपनी कट्टर मुस्लिम विरोधी छवि के लिए जाना जाता है। बताया जाता है कि दंगों से पहले अमित ने मुसलमानों के खिलाफ एक भड़काऊ भाषण दिया था जो फ़ेसबुक और यूट्यूब का माध्यम से इलाके में फैल गया और यही भाषण दंगों की मुख्य वजह बना। हालांकि मुख्य आरोपी सहित 150 अन्य लोगों को हिरासत में लिया है और इसके बाद से स्तिथि नियंत्रण में है।
फ़ेसबुक और यूट्यूब पर अमित वीरासिंहें की वीडियो और पोस्ट देखने से पता चलता है कि यह दंगा पहले से प्रायोजित था। अमित वीरासिंहें श्रीलंका में मुसलमानों की बढ़ती आबादी की वजह से मुस्लिम समुदाय को अपने निशाने पर रखता था।
श्रीलंका पुलिस के अनुसार कोलंबो से 115 किमी पूर्व में कैंडी जिले में उस समय हिंसा फैली जब एक जली हुई इमारत के अवशेष से एक मुस्लिम का जला हुआ शव बरामद हुआ। यह दंगे पहले कैंडी के उदिसपुत्त्वा और टेलडेनिया में शुरू हुए और बाद में डिगाना, टेनेकुम्बरा और अन्य इलाकों में फैल गए। अब हालात 9 मार्च से काबू में हैं, इसके लिए प्रशासन को भारी मात्रा में बल तैनात करना पड़ा है।
दंगा ग्रस्त इलाकों में सोशल मीडिया को बंद कर दिया गया था, जिसे 10 मार्च से फिर बहाल कर दिया गया है।
संयुक्त राष्ट्र की कड़ी निंदा
रविवार को संयुक्त राष्ट्र ने श्रीलंका में हुए मुस्लिम विरोधी दंगो की निंदा की थी। संयुक्त राष्ट्र के राजनीतिक मामलों के अंडर जनरल सेक्रेटरी जैफरी फेल्टमैंन ने मुस्लिम विरोधी दंगो की निंदा करते हुए श्रीलंका सरकार से दंगों के आरोपियों को कानूनी दायरे में लाने को कहा है।

Thursday, March 8, 2018

आधुनिक भारत में भाजपा और उसकी राजनीति

1984 के लोकसभा चुनावों में केवल दो सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी आज देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है, अगर पार्टी के सदस्यों की संख्या को आधार माना जाए तो यह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को पीछे छोड़कर विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। भाजपा को खड़ा करने में राम जन्मभूमि आंदोलन का सबसे बड़ा योगदान रहा।
1996 में पहली बार भाजपा संसद में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी और उसने 13 दिन सरकार भी चलाई। 1998  में भाजपा की अगुवाई में NDA बना और एक साल सरकार चला सके। इसके एक साल बाद 1999 में भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत हासिल करके सत्ता में आई और अपना कार्यकाल पूर्ण किया। यह पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया।
2004 से भाजपा 10 साल संसद में मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर रही।
इसके बाद भाजपा का स्वर्णिम युग 2014 में शुरु हुआ। 2014 में भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा को जबरदस्त बहुमत मिला, इसके बाद पंजाब, दिल्ली और बिहार को छोड़कर लगभग हर राज्य में भाजपा ने सरकार बनाई।
आज भाजपा की 15 राज्यों में अपने दम पर सरकार है और 6 राज्यों में भाजपा सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार में है।
भाजपा का बढ़ता प्रभाव
यह भाजपा का प्रभाव ही है जिसकी वजह से 23 साल पुराने दुश्मन बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी को साथ आना पड़ा। 2 जून 1995 में स्टेट गेस्ट हाउस कांड से शुरु हुई दुश्मनी को 23 साल बाद भुलाना पड़ा, इनका श्रेय भाजपा के बढ़ते कदमों को ही दिया जाना चाहिए।
भाजपा के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए ही बिहार में एक दूसरे के कट्टर विरोधी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को साथ आना पड़ा तथा कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाना पड़ा।
भाजपा की बढ़ती ताकत के सामने अपने घटते कद की वजह से महाराष्ट्र में शिव सेना  को अपना दशकों पुराना गठबंधन तोड़ना पड़ा क्योंकि शिव सेना भी हिंदुत्व के नाम पर आई थी और अब इसी मुद्दे पर उसे अपना वोट बैंक भाजपा की ओर आकर्षित होता लग रहा है।
क्या कारण है भाजपा के बढ़ने के
भाजपा के इस बढ़ते हुए कद के पीछे सबसे बड़ा कारण उसकी हिंदूवादी छवि माना जाता है। हिंदूवादी छवि होने के चलते ही बहुत से हिंदूवादी संगठन जैसे बजरंग दल, हिन्दू युवा वाहिनी, गौरक्षा दल और विश्व हिंदू परिषद भाजपा के लिए जमीनी स्तर पर काम करते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पीछे से भाजपा को चलाता है। समय समय पर आरएसएस भाजपा नेताओं, मंत्रियों यहाँ तक कि प्रधानमंत्री तक को संघ के कार्यालयों में बुलाकर सरकार के कामकाज की समीक्षा करता रहता है। यही नही आरएसएस भाजपा की भावी रणनीति तथा चुनावी प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भाजपा तथा अन्य दलों में यह सबसे बड़ा अंतर है कि उनके पास इस प्रकार के जमीनी स्तर पर काम करने वाले संगठनों का अभाव है।
भाजपा की सफलता का श्रेय  उसके चुनावी प्रबंधन को भी मिलना चाहिए क्योंकि यह भाजपा का चुनावी प्रबंधन ही है जो उसने बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं की फौज तैयार कर रखी है। त्रिपुरा के चुनावों में तो भाजपा ने वोटर लिस्ट के हर एक पन्ने के लिए एक अलग टीम बना रखी थी।
इसके साथ ही भाजपा की सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भी दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री में खुद को प्रस्तुत करने की असिमित क्षमता है। उनके समर्थक उनके इस तरह दीवाने हैं कि वह जो कहते हैं लोग उसको सच मानने से रोक नही पाते। 2014 में लंबे चौड़े वादों से मिले अपार समर्थन से प्रधानमंत्री बनने के बाद, मतदाताओं की ढेरों उम्मीदों में उन्होंने खुद को दबने नही दिया। उन्होंने जनता से किये बड़े बड़े वादों को खुद के व्यक्तित्व के सामने बौना साबित कर दिया। लोग प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व के सामने उनके वादों को भूलते गए।
प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का आलम यह है कि देश इन दिनों बढ़ती महंगाई, बैंकों में घटते भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और चरमराई हुई अर्थव्यवस्था से परेशान है परंतु प्रधानमंत्री के समर्थकों को इस बात से कोई परेशानी नही है, उनके लिए प्रधानमंत्री आज भी वही 2014 वाले हीरो हैं जो 2014 में हर साल 1 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा करके आये थे।
कहा जाता है कि जब ताकत बढ़ती है तो घमंड अपने आप आ जाता है। आज कल ऐसा ही कुछ भाजपा में भी देखने को मिल रहा है। इसे घमंड कहें, सत्ता का लोभ कहें, लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कहें या राजनीतिक निपुणता, चुनावी प्रबंधन।
सत्ता पाने के लिए भाजपा साम, दाम, दंड व भेद सभी नियमों का पालन कर रही है। जहाँ बहुमत मिलता है वहाँ तो सरकार बना ही रही है परंतु जहाँ पार्टी बुरी तरह पिछड़ रही है जैसे मेघालय में पार्टी ने महज 2 सीटें लाकर भी सरकार बना ली।
गोआ में भाजपा को 13 सीटें मिली थी जबकि प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस 17 सीटें लेकर भी भाजपा की रणनीति के आगे हार गई और सरकार नही बना पायी ऐसा ही मणिपुर में हुआ कांग्रेस 28 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी थी परंतु भाजपा 21 सीटें जीतकर ही सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है। इन दोनों राज्यों में हैरान करने वाली बात यह है कि राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए पहले बड़े दल को न्योता नही दिया।

तीन तलाक और भारत की समस्याएं

विश्व बैंक के ताजा आँकड़ों के अनुसार भारत विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। हमनें छठे स्थान पर पहुँचने के लिए फ्रांस को पीछे ध...