Thursday, March 22, 2018

एकता की नई मिसाल, चमन उर्फ़ रिज़वान

हिंसा के इस दौर में भी देश में कहीं न कहीं से एकता और सौहार्द की मिसालें सामने आती रहती हैं। एकता की इन्ही मिसालों से देश में गंगा जमुनी तहजीब बनी हुई है। अभी कुछ ही दिनों पहले होली पर लखनऊ में होली के जुलूस की वजह से मुस्लिम समाज के लोगों ने जुमे की नमाज़ का वक़्त थोड़ा आगे बढ़ा लिया था ताकि होली का जुलूस शांतिपूर्ण ढंग से पूरा हो सके।
अब नई मिसाल उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से सामने आई है। यहाँ अजीबोगरीब मामला सामने आया, इस मामले ने संत कबीर दास जी की याद दिला दी।
मुरादाबाद में मानसिक रूप से कमजोर एक युवक की मृत्यु हो गई। मृत्यु होने के बाद हिन्दू और मुसलमान दोनों समाज के लोग उसका अपने धार्मिक तरीकों से अंतिम सं
स्कार करना चाहते थे। मामला इतना बढ़ गया कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दखल देना पड़ा। बड़ी मशक्कत के बाद 10 घण्टे बाद मामला सुलझा और उस युवक का दोनों धर्मो के मिले जुले तरीकों से अंतिम संस्कार किया गया।
क्या था पूरा मामला
2014 में मुरादाबाद शहर की ईदगाह के पास एक मानसिक रूप से कमजोर युवक मिला था। युवक का पता चलने पर शहर के मोहल्ला डबल फाटक निवासी ज्वाला सैनी ने उस युवक को अपना बेटा चमन बताया जो 2009 में घर से लापता हो गया था परंतु इस बात पर विवाद तब बढ़ा जब शहर के ही मोहल्ला असालतपुर निवासी सुब्हान ने युवक को अपना भाई रिज़वान बताया। इस मामलें में उस वक़्त काफी विवाद हुआ था परंतु पुलिस ने स्थायी समाधान खोजने की जगह दोनों पक्षों में समझौता करा दिया कि ज्वाला सैनी और सुब्हान दोनों के परिवार संयुक्त रूप से उस युवक की देखभाल करेंगे। तभी से चमन उर्फ रिज़वान दोनों परिवारों में रह रहा था। चमन उर्फ रिज़वान की वजह से दोनों परिवारों के बीच भी एक संम्बंध बन गया था।
अब चमन उर्फ रिज़वान काफी दिनों आए बीमार चल रहा था, बीमारी की वजह से ही उसकी मौत हो गई। जब मौत हुई तो वह ज्वाला सैनी के घर पर ही था। मौत की खबर मिलने के बाद सुब्हान का परिवार पहुंचा। उन्होंने जा कर देखा तो हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार उसके अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी। इसका सुब्हान के परिवार ने विरोध किया तो मामला बढ़ गया और दोनों पक्ष आमने सामने आ गए। दोनों ही पक्ष अपने अपने तरीके से रिज़वान का अंतिम संस्कार करना चाहते थे। मामला बढ़ने पर पुलिस तथा सिटी मजिस्ट्रेट को आला अधिकारियों के साथ हस्तक्षेप करना पड़ा। करीब दस घंटे की मशक्कत के बाद मामला सुलझा। उसे ज्वाला सैनी के घर से ही अर्थी पर ले जाया गया परंतु उस का ग़ुस्ल इस्लामी तरीके से किया गया। अल्लाह हु अकबर और घंटो की सदाओं में उसकी जनाजे की नमाज़ अदा की गई और दफन कर दिया गया परंतु दफन कब्रस्तान में नही शमशान में हुआ। माहौल इतना सौहार्दपूर्ण था कि अर्थी को एक ओर तो टीका लगाये और दूसरी ओर टोपी ओढ़े लोग कंधा दे रहे थे।

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