Saturday, March 17, 2018

रोहिंग्या मुसलमानों पर ज़ुल्म करने के म्यांमार के कारण

रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ चले म्यांमार सरकार के बर्बर अभियान के बारे में तो सभी जानते हैं। हाल ही में इनके बारे में नया खुलासा हुआ है। खुलासा यह हुआ है कि जब म्यांमार ने रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निकाला था तो उस वक़्त ये तर्क दिया था कि रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के नागरिक नही हैं इसलिए इन्हें देश से निकाला जा रहा है।
कुछ ही दिन पूर्व एमनेस्टी इंटरनेशनल ने म्यांमार के रखाइन प्रान्त की सेटेलाइट से ली हुई तस्वीरें जारी की थीं, इनमें दिखाया गया था कि म्यांमार के सभी इलाकों से रोहिंग्या बस्तियों का नामोनिशान मिटा दिया गया है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा ताज़ा जारी की गई तस्वीरों से पता चलता है कि रोहिंग्या बस्तियों को खत्म करने के बाद म्यांमार ने इन स्थानों पर अपने सैन्य अड्डे विकसित कर लिए हैं।
गौरतलब है कि म्यांमार सरकार ने बांग्लादेश की सरकार से वहाँ रह रहे लगभग सात लाख रोहिंग्या मुसलमानों को अगले साल अपने देश वापस लेने का समझौता किया है परंतु म्यांमार के इस तरह सैन्य अड्डे बनाने से उसकी मंशा पर संदेह होता है कि म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों को फिर वापस लेना चाहता है। इससे पहले म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। पिछले दो सालों से रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार की सरकार और सेना द्वारा सताया जा रहा था। बीते साल यह संघर्ष इतना बढ़ा कि रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार छोड़कर भागना पड़ा। लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश में शरण लेनी पड़ी और लगभग 40 हज़ार रोहिंग्या मुसलमान भारत में शरण लिए हुए हैं।
टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार एमनेस्टी इंटरनेशनल की नयी तस्वीरों से यह साबित हुआ है कि रखाइन प्रान्त का पुनर्निर्माण बहुत ही गोपनीय ढंग से किया जा रहा है। रखाइन के आखरी तीन सैन्य अड्डे इसी साल बनाए गए हैं, जबकि अभी कई सैन्य अड्डे निर्माणाधीन हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि म्यांमार सरकार द्वारा कब्ज़े में ली गई ज़मीन पर उन्ही सैन्य बलों के लिए नए अड्डे बनाए जा रहे हैं जिन्होंने मानवता के खिलाफ जा कर रोहिंग्या मुसलमानों पर ज़ुल्म ढाया था।

कौन हैं रोहिंग्या???
रोहिंग्या पश्चिमी म्यांमार के रखाइन प्रान्त में रहने वाली एक जाति है, जो धार्मिक रूप से मुसलमान हैं। ये लोग बर्मा की भाषा की जगह ज़्यादातर बंगाली भाषा बोलते हैं। ये पीढ़ियों से म्यांमार में रह रहे हैं लेकिन अब म्यांमार इनको अवैध प्रवासी मान रहा है, जो कोलोनियल शासन के दौरान म्यांमार में आ कर बस गए थे। म्यांमार के नागरिकता अधिनियम 1982 के अनुसार उन्ही रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार की नागरिकता मिल सकती है, जो ये साबित कर दें कि उनके पुर्वज 1823 से पहले से म्यांमार में रह रहे थे। इसलिए 1982 से म्यांमार ने रोहिंग्या मुसलमानों को अपना नागरिक मानने से इनकार कर दिया और उनके नागरिक अधिकार छीन लिए। तभी से रोहिंग्या मुसलमानों का सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है। म्यांमार के उनको नागरिक न मानने की वजह से उन्हें सभी तरह की सुविधाएं एवं अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। उसी वक़्त से रोहिंग्या मुसलमान अपने अधिकारों और नागिरकता को बहाल करने के लिए शांतिपूर्ण ढंग से मांग कर रहे हैं।

रोहिंग्या के विरुद्ध म्यांमार में कब परिवर्तन आए
2015 तक म्यांमार में सेना का शासन रहा है, इसके बाद 2015 में पहली बार म्यांमार में लोकतांत्रिक तरीके से सरकार बनी। सरकार की सर्वेसर्वा आंग सान सू की हैं, लेकिन नाममात्र के लिए हतिन क्याव को म्यांमार का राष्ट्रपति बना दिया गया है, क्योंकि कुछ संविधानिक प्रावधानों के चलते आंग सान सू की देश की राष्ट्रपति नही बन सकती थीं।
आंग सान सू की के सत्ता में आने के बाद देश में रोहिंग्या मुसलमानों पर संकट बढ़ गया। आंग सान सू की ने सुनियोजित तरीके से सेना द्वारा अभियान चलाकर दस लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निकाल दिया और सेना की इस कार्यवाही में हज़ारों की तादाद में रोहिंग्या मुसलमान मारे गए हैं। उनके साथ ऐसा बर्बर रवैया अपनाया गया कि जिस को देख कर किसी का भी मन विचलित हो सकता है। म्यांमार से निकाले गए रोहिंग्या
मुसलमान शरण के लिए काफी दिनों तक समुद्र में एक देश से दूसरे देश मदद मांगते रहे, परंतु लगभग सभी देशों ने अपनी सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने से मना कर दिया। सोच कर भी मन विचलित हो जाता है कि ये लोग महीनों तक नाव के सहारे समुद्र में ही रहे, इनमे से काफी की मौत भूख की वजह से भी हो चुकी है। बाद में बांग्लादेश, थाईलैंड, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया और भारत में इन्हें शरण मिली।
म्यांमार की सेना द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों पर इस कदर ज़ुल्म ढाया गया था कि संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार की सेना के इस अभियान को नस्ली सफाया बताया था।
म्यांमार की आंग सान सू की को शांति के क्षेत्र में अनेक अंतरास्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे परंतु रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ उनके इस अभियान के कारण ज़्यादातर पुरस्कार उनसे वापस ले लिए गए हैं।

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