Tuesday, July 24, 2018

तीन तलाक और भारत की समस्याएं

विश्व बैंक के ताजा आँकड़ों के अनुसार भारत विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। हमनें छठे स्थान पर पहुँचने के लिए फ्रांस को पीछे धकेला है और जल्दी ही ब्रिटेन को पीछे छोड़कर हम पांचवें स्थान पर आने वाले हैं।
विश्व बैंक के अनुसार भारत की जीडीपी 2.597 खरब डॉलर है जबकि फ्रांस की हमसे कम 2.582 खरब डॉलर है और हमारा अगला  प्रतिद्वंद्वी ब्रिटेन हमसे कुछ ही दूरी पर यानी 2.622 खरब डॉलर पर है। देश के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है और इसके लिए सभी देशवासी बधाई के पात्र हैं।

विश्व में हम छठे स्थान पर तो पहुंच गए लेकिन देश में अभी भी बहुत सी ऐसी समस्याएं हैं जिनसे पार पाना बहुत जरूरी है।
इन समस्याओं को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। आज मेरे इस ब्लॉग का यही मकसद है कि मैं अपने देशवासियों को देश की कुछ समस्याओं से अवगत करा सकूँ।
समस्याओं को मैंने दो वर्गों में विभाजित किया है।
1. वह समस्याएं जिन्हें सरकार असली समस्या मानती है।
आइये देखते हैं सरकार किन समस्याओं को देश की असली समस्या मानती है। काफी सोचने के बाद मुझे सिर्फ एक ही ऐसी समस्या मिली जिसे लेकर सरकार गंभीर है और जल्दी से जल्दी उसका समाधान चाहती है।
तीन तलाक - जी हाँ, सरकार की नज़र में आज की तारीख में अगर कोई समस्या है जिसकी वजह से सीमा पर लगातार घुसपैठ बढ़ती जा रही है, देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, शिक्षा का स्तर गिर रहा है, भुखमरी बढ़ी है, बच्चे कुपोषित हो रहें हैं, तो इस सब की एक वजह है, वह है तीन तलाक। इसलिए सरकार तीन तलाक के मुद्दे के समाधान के लिए इतनी प्रयत्नशील है क्योंकि डॉलर आज लगभग 70 के बराबर है और इसे 40 के स्तर तक लाना है तो सबसे पहले तीन तलाक का मुद्दा सुलझाना होगा।
सरकार इस समस्या को सुलझाने में इतनी गंभीर है अभी हाल ही में मानसून सत्र शुरू होने से पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को खत लिखकर महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने को कहा तो सरकार की ओर से जवाबी खत में महिला आरक्षण विधेयक पास कराने के लिए उससे पहले तीन तलाक बिल पास कराने की शर्त रखी।
सरकार इस बिल को पास कराने के लिए शायद इस लिए तत्पर है क्योंकि गुजरात के लगभग8 जिलों में बाढ़ के हालात बने हुए हैं और यह बिल संसद में पास हो जाता है तो बाढ़ का पानी अपने आप वापस जा सकता है।
आखिर तीन तलाक विधेयक में ऐसा क्या है, जो सरकार इसे पास कराने के लिए इतनी जद्दोजहद कर रही है।
तीन तलाक को कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया था, मतलब अब अगर कोई पति अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है तो कानूनी रूप से वह तलाक नहीं माना जायेगा।
अब सरकार का पक्ष देखिये, सरकार चाहती है कि जो पति अपनी पत्नी को तीन तलाक दे उसको कम से कम तीन साल की सज़ा का प्रावधान हो और वह अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता भी देगा। यही पर असली पेच है। सुप्रीम कोर्ट कहता है कि किसी ने अपनी पत्नी को तीन तलाक दिया तो वह तलाक नही माना जायेगा यानी वह दोनों पहले की तरह ही पति पत्नी हैं। ऐसी स्थिति में सरकार चाहती है कि पति को उठाकर जेल में डाल दिया जाए और पत्नी को बेसहारा कर दिया जाए और अब जब पति जेल में है तो वह पत्नी को बिना कमाए गुजारा भत्ता दे, वह भी उस अपराध के लिए जो कभी हुआ ही नही है क्योंकि संविधानिक रूप से वह अब भी पति पत्नी हैं उनके बीच कभी तलाक हुआ ही नही।

खैर इनके अतिरिक्त भी देश में छोटी छोटी समस्याएं है, जिन्हें मैं देश की वास्तविक समस्या मानता हूँ। उनमें से कुछ निम्न हैं-
1. साक्षरता दर- 2011 की जनगढना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 74.04% है। वर्ल्ड एटलस के अनुसार भारत साक्षरता दर के आधार पर विश्व में 159वें स्थान पर है। अफसोस होगा यह जानकर कि घाना, केन्या, यूगांडा, सूडान, इराक, ज़िम्बाब्वे, ईरान, लेबनान, लीबिया जैसे देश साक्षरता दर में हमसे आगे हैं।
आल ग्लोबल मोनिटरिंग रिपोर्ट 2014 के अनुसार देश में लगभग 28.7 करोड़ लोग निरक्षर हैं, विश्व के कुल निरक्षर लोगों का 37% हमारे देश भारत में है।
आज भी देश में 40% बच्चे आठवीं कक्षा पास करने से पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं।
यूनिसेफ के मुताबिक भारत के 8 करोड़ बच्चे कभी स्कूल जा ही नही पाते।
29% स्कूलों में मैथ तथा साइन्स के अध्यापक ही नही हैं।
अध्यापक तो बाद की बात है, देश के 85% गांवों में सेकंडरी स्कूल तक नही हैं।
एचआरडी मंत्रालय के मुताबिक देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में करीब 40 % शिक्षकों के पद रिक्त हैं।
2. बेरोजगारी- अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन की नवीनतम रिपोर्ट 'वर्ल्ड एम्प्लायमेंट एंड सोशल आउटलुक' में वर्ष 2017 तथा 2018 में भारत की बेरोजगारी दर 3.5% बढ़ने का अनुमान है। रिपोर्ट के अनुसार देश में बेरोज़गारों की संख्या वर्ष 2017 के 17.8 मिलियन की बजाय वर्ष 2018 में 18.3 मिलियन रहने की उम्मीद है।
3. स्वास्थ्य सेवाएं- नेशनल हैल्थ प्रोफाइल 2015 के अनुसार देश में प्रति 61000 लोगों पर औसतन 1 सरकारी अस्पताल है और प्रति 1883 लोगों पर सरकारी अस्पताल के सिर्फ 1 बैड का औसत है। देश में प्रति 1700 लोगों पर औसतन 1 डॉक्टर है।
भारत अपनी जीडीपी का महज 1% सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर ख़र्च करता है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सभी देशों को जीडीपी का 5% स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करना चाहिए।
4. बाढ़- हर साल मानसून आते ही देश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिससे लाखों लोग सीधे प्रभावित होते हैं। दुनिया में बाढ़ की वजह से होने वाली प्रत्येक पांचवीं मौत भारत में होती है। राज्यसभा के अनुसार वर्ष 2005 में बाढ़ से 1455 मौतें हुई, वर्ष 2008 में 2876, वर्ष 2014 में 1968 तथा वर्ष 2017 में 2015 मौतें बाढ़ से हुई।
मुम्बई दुनिया के उन चुनिंदा शहरों में से एक है जिसकी रफ्तार कभी नही थमती लेकिन मानसून के दिनों में भारत की यह आर्थिक राजधानी समुद्र बन जाती है।
5. गिरता रुपया - रुपया अब तक के निचले स्तर 69.12 तक पहुंच गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कहा था कि रुपये और केंद्र सरकार के बीच प्रतियोगिता चल रही है कि कौन ज़्यादा गिरेगा। खैर अब दिल्ली में खुद मोदी जी की सरकार है तो पता नहीं कि रुपये की प्रतियोगिता अब किस से चल रही है।
6. जनसंख्या- विश्व बैंक के अनुसार 2016 में भारत की जनसंख्या 132.42 करोड़ थी। जनसंख्या के मामले में हम दुनिया मे दूसरे नम्बर पर हैं जबकि क्षेत्रफल के हिसाब से विश्व में हम सातवें स्थान पर हैं। चीन हमसे क्षेत्रफल में तीन गुना बड़ा है लेकिन उसकी आबादी हमसे महज पांच करोड़ ज़्यादा है।
7. विदेशी नीति- प्रधानमंत्री के लगभग आधी से ज़्यादा दुनिया घूमने के बाद भी हमारी विदेश नीति अनिश्चित है। चीन हमें कभी भी आँखें दिखा देता है, चीन की वजह से ही हम मसूद को आतंकी सूची में नही डलवा पाए और उन दिनों को भी ज़्यादा वक़्त नही हुआ जब चीन ने हमारी सीमा के 19 किमी अंदर टेंट लगाकर चीन का झंडा लगा दिया था। विदेश नीति की कमजोरी की ही वजह है कि कभी हमें अमेरिकी दवाब में ईरान से तेल आयात कर करना पड़ता है और कभी रूस से रक्षा सौदे टालने पड़ते हैं। इसे कमजोर विदेश नीति ही कहेंगे बांग्लादेश जैसे छोटे देश के दवाब में आकर हमें ब्रिटिश सांसद का वीजा रदद् करना पड़ता है और हमारा सबसे भरोसेमंद दोस्त रूस पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास कर रहा है, ऐसा हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि रूस पाकिस्तान से मिल सकता है। यह सब हमारी विदेश नीति की ही तो असफलता है।
8. किसान आत्महत्या- नेशनल क्राइम रिकॉर्ड बयूरो के अनुसार वर्ष 2014 में देश में 5650 किसानों ने आत्महत्या की है। आत्महत्या का यह आंकड़ा 2004 में 18241 पर था।
देश में होने वालों कुल आत्महत्याओं का 11.2 % किसान होते हैं। ऐसे कौन से कारण हैं जिनकी वजह से किसानों को आत्महत्या करनी पड़ती है? शायद किसी भी सरकार ने यह जानने का प्रयास आज तक नही किया?
9. बिजली- दूर की बात छोड़ो जिस शहर में मैं रहता हूँ, वहां इन दिनों मुश्किल से 6-8 घण्टे बिजली का औसत है और मैं देश के एक संम्पन्न क्षेत्र में रहता हूं। यहाँ कारोबार उद्योग-धंधे अच्छी तरह से फले फुले हुए हैं। जब देश के संम्पन्न क्षेत्र का हाल यह है तो पिछड़े हुए क्षेत्रों का क्या हाल होगा।
10. ट्रेनें- आज शायद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है परन्तु जो ट्रेनें मौजूदा वक्त में चल रही हैं उनमें भीड़ इस कदर है कि इसकी तो बात ही हम नही करते परन्तु समय पर जरूर बात करना चाहूंगा। देश में बहुत कर ऐसी ट्रेनें हैं जो समय पर चल रही हैं। कुछ दिन पहले तो हालात यह थे कि ट्रेनें अपने ठीक दिन से भी एक दो दिन पीछे चल रहीं थीं।
यह कुछ समस्याएं मेरे दिमाग में आई तो मैंने आपके सामने रख दीं परन्तु यह सब सरकार के लिए समस्या की श्रेणी में आती हैं या नही , यह तो भविष्य ही बताएगा। फिलहाल सरकार की प्राथमिकता वाली समस्या से तो आप रूबरू हो ही गए हैं।

Friday, May 4, 2018

Jinnah at AMU

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स यूनियन हॉल में लगी जिन्ना की तस्वीर का मामला शांत होता नही दिख रहा। यह मामला पिछले 2 मई से गरमाया हुआ है आगे भी इस पर राजनीति होने की पूरी संभावना है।
क्या है पूरा मामला
इस मामलें की शुरुआत भाजपा सांसद सतीश गौतम के ट्वीट से हुई। उन्होंने ट्वीटर पर कहा कि ऐसी क्या मजबूरी है जो एएमयू प्रशासन को विश्वविद्यालय में पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर लगानी पड़ रही है। सतीश गौतम का कहना है कि उन्होंने इस बाबत एएमयू के कुलपति को पत्र लिख कर एएमयू के छात्रसंघ कार्यलय में लगी जिन्ना की तस्वीर पर आपत्ति जताई और इसको हटाने की मांग की, जबकि इस संबंध में विश्विद्यालय का कहना है कि इस बाबत उन्हें कोई पत्र नही मिला।
सतीश गौतम के ट्वीट के बाद हिन्दू जागरण मंच , एबीवीपी  और हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने विश्वविद्यालय से जिन्ना की तस्वीर हटाने के लिए मुख्य गेट के बाहर बबाल काटा, जिन्ना का पुतला फूंकने का प्रयास किया और जय श्री राम, भारत माता की जय और बंदेमातरम जैसे नारे लगाते हुए, हाथों में पत्थर और बेल्ट लिए परिसर में घुसने की कोशिश की। इसके बाद हिन्दू जागरण मंच के कार्यकर्ता छात्रों से भिड़ गए। इसके विरोध में छात्र थाने जाने लगे, थाने जा रहे छात्रों पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया जिसमें एएमयू के छात्रसंघ अध्यक्ष के साथ अन्य छात्रों को काफी चोट आई जिससे छात्र भड़क गए और बाब ए सय्यद गेट पर धरने पर बैठ गए।
छात्र नेताओं की और से भाजपा सांसद सतीश गौतम, संघ, विहिप, हिन्दू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं और सीओ सिटी के खिलाफ तहरीर दी और गिरफ्तारी न होने तक धरना जारी रखने का ऐलान किया। इसके बाद जिलाधिकारी ने घटनाक्रम की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं।
तस्वीर का इतिहास
भारत विभाजन से पहले 1938 में मोहम्मद अली जिन्ना को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मानद सदस्यता प्रदान की गई थी, उसी दौरान यह तस्वीर लगायी गयी थी।
कौन थे मोहम्मद अली जिन्ना
मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान का संस्थापक माना जाता है, पाकिस्तान में उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा दिया जाता है। भारतीय राजनीति में जिन्ना कांग्रेस के एक बड़े नेता के तौर पर जाने जाते थे। जिन्होने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर देते हुए मुस्लिम लीग के साथ लखनऊ समझौता करवाया था। वे अखिल भारतीय होम रूल लीग के प्रमुख नेताओं में गिने जाते थे। काकोरी कांड के चारो मृत्यु-दण्ड प्राप्त कैदियों की सजायें कम करके आजीवन कारावास में बदलने के लिए सेण्ट्रल कौन्सिल के ७८ सदस्यों ने तत्कालीन वायसराय व गवर्नर जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक लिण्डले वुड को शिमला जाकर हस्ताक्षर युक्त मेमोरियल दिया था जिस पर प्रमुख रूप से पं॰ मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, एन॰ सी॰ केलकर, लाला लाजपतराय आदि ने हस्ताक्षर किये थे।
जिन्ना ने बाल विवाह निरोधक  कानून बनाने और साण्डर्स समिति के गठन के लिए काम किया, जिसके तहत देहरादून में भारतीय मिलिट्री अकादमी की स्थापना हुई।
प्रतिक्रियाएं
इस संबंध में उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य का कहना है कि मोहम्मद अली जिन्ना एक महान व्यक्ति थे, उन्होंने राष्ट्र निर्माण में योगदान दिया, उन पर उंगली उठाना गलत बात है।

पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि इस घटिया राजनीति में मुझे मत घसीटीए, ये बहस नेताओं के लिए ही रहने दो।

एएमयू छात्रसंघ अध्यक्ष मशकूर अहमद का कहना है कि जिन्ना की तस्वीर एक ऐतिहासिक तथ्य है और हम इतिहास को बदलने में यकीन नही रखते। भारत विभाजन से पहले 1938 में जिन्ना को मानद उपाधि प्रदान की गई थी, उसी दौरान यह तस्वीर लगाई गई थी। आरएसएस के इशारे पर यह प्रकरण उठाया गया है ताकि कर्नाटक और आगामी लोकसभा चुनावों में धुर्वीकरण किया जा सके और हॉल में जिन्ना की लगी तस्वीर का यह मतलब नही है कि छात्र जिन्ना से प्ररेण लेते हैं।

2005 में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष नेता बता चुके हैं।

Friday, April 13, 2018

बेटी के अपमान में, बीजेपी मैदान में

पिछले काफी दिनों से एक नारा देश में काफी लोकप्रिय हो रहा है वह है बेटी के सम्मान में, बीजेपी मैदान में। पिछले एक दो महीनों से इस नारे में अप्रत्याशित बदलाव हुआ है, अब नया नारा 'बेटी के अपमान में, बीजेपी मैदान में' ने पुराने नारे का स्थान ले लिया है।
नारा बदला भी क्यों न जाये क्योंकि पिछले दो तीन महीनों में देश मे बलात्कार के मामलों की बाढ़ सी आ गयी है।
लेकिन देश में बलात्कार के दो ऐसे मामले भी हुए हैं, जिसने देश की क्षवि को देश में ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व में कलंकित किया है। पहला मामला जम्मू कश्मीर के कठुआ का है और दूसरा उत्तर प्रदेश के उन्नाव का । इन दोनों मामलों ने देश की आत्मा को झकझोर दिया है।
इन दोनों मामलों के अतिरिक्त भी कुछ ऐसे मामले हैं, जो पूरी तरह से देश के सामने नही आ सके।
देखते है ऐसे कुछ मामलों को
1 अप्रैल, मेरठ- मेरठ के फलादवा कस्बे में 6 साल की बच्ची के साथ गैंगरेप करके हत्या कर दी गयी। फलादवा कस्बे के मोहल्ला जुड़ावाना निवासी बच्ची कस्बे में लगे मेले को देखने के लिए गयी थी। जहाँ दो दरिंदों ने उसे अगवा करके उसके साथ गैंगरेप किया।
1 अप्रैल, मुरादाबाद- मुरादाबाद के डिलारी में दो युवकों ने एक महिला के साथ गैंगरेप किया और उसकी वीडियो भी बनाई।
1 अप्रैल, गाज़ियाबाद- गाज़ियाबाद के लोनी में 26 साल के जितेन्द्र ने आठ साल की बच्ची से रेप किया, हालांकि रेप के आरोपी को पब्लिक ने पकड़ लिया और उसकी पिटाई की जिससे मौके पर ही आरोपी की मौत हो गयी।
3 अप्रैल, मुरादाबाद- मुरादाबाद के भोजपुर क्षेत्र में एक युवक ने एक युवती से रेप किया। काफी जद्दोजहद के बाद भी पुलिस ने युवक को नही पकड़ा, इससे मायूस होकर युवती ने ट्रेन से कटकर अपनी जान दे दी।
4 अप्रैल, रामपुर- रामपुर के शाहबाद क्षेत्र की किशोरी से गांव के ही संजय और गोविंदा नाम के युवकों ने रेप किया, जब किशोरी सुबह में शौच को गई थी।
4 अप्रैल, रामपुर- रामपुर के टांडा में तीन साल की मासूम बच्ची को पड़ोसी युवक अंकुर ने बहला कर अपने घर बुलाया और उसके साथ रेप किया। जब बच्ची रोने लगी तो आरोपी उसे संदूक में बंद करके भाग गया।
4 अप्रैल, वाराणसी- लाल बहादुर शास्त्री अंतराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर तैनात एक निजी एयरलाइन्स की महिला कर्मी के साथ एयरपोर्ट पर तैनात निजी अस्पताल के डॉ आशुतोष आस्थान और एयरपोर्ट पर ग्राउंड हैंडलिंग स्टाफ सप्लाई करने वाली एक कंपनी का मैनेजर सत्येंद्र सिंह ने अपने साथियों के साथ गैंगरेप किया।
5 अप्रैल, बरेली- स्कूल से घर जा रही दशवीं की छात्रा को वैन में खींचकर रेप की कोशिश।
6 अप्रैल, अमरोहा- आज का दिन अमरोहा को झकझोरने वाला था। तीन मासूम बच्चियों सहित रेप के चार मामले अमरोहा के अलग अलग हिस्सों से सामने आए।
6 अप्रैल, मुरादाबाद- मुरादाबाद के ठाकुरद्वारा क्षेत्र में रिंकू नाम के युवक ने अपने दो साथियों के साथ एक युवती से दुष्कर्म किया ।
10 अप्रैल, रामपुर- रामपुर के मिलक में तीन युवकों विक्की, सर्वेश और संजय ने मोहल्ले की किशोरी को घर पर अकेली पा कर उसके साथ गैंगरेप किया।
11 अप्रैल, मुरादाबाद- भोजपुर क्षेत्र में एक सरकारी स्कूल में तैनात शिक्षिका के साथ गांव के प्रधान ने स्कूल में दुष्कर्म की कोशिश की। पुलिस से शिकायत करने पर कार्यवाही न होने पर शिक्षिका ने जहर खा कर जान देने की कोशिश की।
11 अप्रैल, संभल- संभल के गुन्नौर क्षेत्र में दो युवकों ने सात साल की बच्ची के साथ गैंगरेप किया। बच्ची के साथ ऐसा बहशीपन किया गया कि बच्ची खून से लथपथ हो गयी, बच्ची को गंभीर हालत में अलीगढ़ रेफर किया गया।
12 अप्रैल, संभल- संभल के कमलपुर सराय मोहल्ले में युवक ने तमंचे के बल पर छठी की छात्रा के साथ रेप किया।
12 अप्रैल, संभल- संभल के नरौली क्षेत्र में दुष्कर्म में नाकाम युवक अंकित ने किशोरी के ऊपर मिटटी का तेल डालकर आग लगाई, किशोरी की हालत गंभीर बनी हुई है।
यह महज अप्रैल के मामलें हैं और एक वारणसी का मामला छोड़कर सभी मामले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश देश का बहुत छोटा सा हिस्सा है, आप अनुमान लगा सकते है कि सम्पूर्ण देश में क्या हाल होगा। उत्तर प्रदेश और देश में उन्ही लोगों की सरकार है जो बेटी बचाओ का नारा देतें हैं।

आइये अब देखते हैं देश की आत्मा को झकझोरने वाले कठुआ और उन्नाव के मामलों को।
कठुआ मामला
कठुआ मामले की चार्जशीट से इस बात का खुलासा हुआ है कि आठ साल की बच्ची आसिफा को कठुआ जिले के एक गांव में स्थित मंदिर में एक हफ्ते तक नशीली दवा देकर रखा गया और छह लोगों द्वारा उसका गैंगरेप किया गया। इस चार्जशीट में जो सबसे बड़ा खुलासा हुआ है वह यह है कि आठ साल की बच्ची के साथ गैंगरेप और उसकी हत्या एक सोची समझी साजिश का हिस्सा थी।
कठुआ स्थित रासना गांव में मंदिर के सेवादार साँझीराम को अपहरण, बलात्कार और हत्या के पीछे मुख्य साजिशकर्ता बताया गया है।
साँझीराम के साथ विशेष पुलिस अधिकारी दीपक खजुरिया और सुरेंद्र वर्मा , साँझीराम का दोस्त प्रवेश कुमार, साँझीराम का बेटा और भतीजा इस मामले में शामिल थे।
बच्ची अल्पसंख्यक बकरवाल समुदाय से सम्बंधित थी, साँझीराम बकरवाल समुदाय को गांव से निकालना चाहता था इसलिए उसने बकरवाल समुदाय की बच्ची का अपहरण करके उसके साथ घिनोनी हरकत करने की साज़िश रची।
चार्जशीट के मुताबिक इन सब लोगों ने बच्ची को नशीली दवा खिलाकर एक हफ्ते तक कैद रखकर उसके साथ लगातार रेप किया। एक हफ्ते बाद जब बच्ची को मारने के लिए पास के जंगल ले गए। मारने के वक़्त दीपक खजुरिया जंगल पहुंचा और बच्ची को मारने से मना किया, उसने कहा बच्ची को मारने से पहले वह एक बार और उसके साथ रेप करना चाहता है। इस तरह उन्होंने बच्ची को मारने से पहले एक बार फिर उसके साथ रेप किया और फिर पत्थर से उसका सिर कुचलकर उसकी हत्या कर दी।
चार्जशीट में उप निरीक्षक आनंद दत्त और कॉन्स्टेबल तिलक राज भी चार लाख रुपये लेकर अहम सबूत नष्ट करने के लिए नामजद हैं।
उन्नाव मामला
उन्नाव में एक युवती ने आरोप लगाया है कि भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने अपने भाई तथा समर्थकों के साथ मिलकर उसके साथ बलात्कार किया। थाने में विधायक के रसूख की वजह से उसकी रिपोर्ट नही लिखी जा सकी। विरोध करने पर युवती के पिता के साथ मारपीट की गई और मारपीट के आरोप में उसके पिता के खिलाफ मुकदमा लिखा कर जेल भेज दिया गया। युवती मदद मांगने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास पहुँची। मदद न मिलने पर उसने मुख्यमंत्री आवास के बाहर आत्मदाह करने की कोशिश की। इसी वजह से मामला सुर्खियों में आ पाया। उत्तर प्रदेश सरकार पर आरोपी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने का दवाब बढा इसलिए आरोपी विधायक ने मामला वापस लेने के लिए युवती के पिता पर दवाब बनाया और पिटाई कराई, जिससे युवती के पिता की जेल में ही मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अधिक पिटाई से आंत फटने की वजह युवती के पिता की मौत का कारण बनी।
अब इस मामले में रिपोर्ट दर्ज हो गयी है परंतु विधायक की गिरफ्तारी नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार के मुताबिक विधायक के खिलाफ सबूत नहीं है इसलिए गैरजमानती धाराओं में केस दर्ज होने पर भी उसकी गिरफ्तारी नहीं कि है।

दिल को दहला देने वाली घटनाएं हैं दोनों, पहली से तो रूह तक कांप जाती है।
क्या होगा इस सभ्य समाज का??
क्या औरत महज हवस मिटाने का साधन मात्र रह गयी है??

Thursday, March 22, 2018

एकता की नई मिसाल, चमन उर्फ़ रिज़वान

हिंसा के इस दौर में भी देश में कहीं न कहीं से एकता और सौहार्द की मिसालें सामने आती रहती हैं। एकता की इन्ही मिसालों से देश में गंगा जमुनी तहजीब बनी हुई है। अभी कुछ ही दिनों पहले होली पर लखनऊ में होली के जुलूस की वजह से मुस्लिम समाज के लोगों ने जुमे की नमाज़ का वक़्त थोड़ा आगे बढ़ा लिया था ताकि होली का जुलूस शांतिपूर्ण ढंग से पूरा हो सके।
अब नई मिसाल उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से सामने आई है। यहाँ अजीबोगरीब मामला सामने आया, इस मामले ने संत कबीर दास जी की याद दिला दी।
मुरादाबाद में मानसिक रूप से कमजोर एक युवक की मृत्यु हो गई। मृत्यु होने के बाद हिन्दू और मुसलमान दोनों समाज के लोग उसका अपने धार्मिक तरीकों से अंतिम सं
स्कार करना चाहते थे। मामला इतना बढ़ गया कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दखल देना पड़ा। बड़ी मशक्कत के बाद 10 घण्टे बाद मामला सुलझा और उस युवक का दोनों धर्मो के मिले जुले तरीकों से अंतिम संस्कार किया गया।
क्या था पूरा मामला
2014 में मुरादाबाद शहर की ईदगाह के पास एक मानसिक रूप से कमजोर युवक मिला था। युवक का पता चलने पर शहर के मोहल्ला डबल फाटक निवासी ज्वाला सैनी ने उस युवक को अपना बेटा चमन बताया जो 2009 में घर से लापता हो गया था परंतु इस बात पर विवाद तब बढ़ा जब शहर के ही मोहल्ला असालतपुर निवासी सुब्हान ने युवक को अपना भाई रिज़वान बताया। इस मामलें में उस वक़्त काफी विवाद हुआ था परंतु पुलिस ने स्थायी समाधान खोजने की जगह दोनों पक्षों में समझौता करा दिया कि ज्वाला सैनी और सुब्हान दोनों के परिवार संयुक्त रूप से उस युवक की देखभाल करेंगे। तभी से चमन उर्फ रिज़वान दोनों परिवारों में रह रहा था। चमन उर्फ रिज़वान की वजह से दोनों परिवारों के बीच भी एक संम्बंध बन गया था।
अब चमन उर्फ रिज़वान काफी दिनों आए बीमार चल रहा था, बीमारी की वजह से ही उसकी मौत हो गई। जब मौत हुई तो वह ज्वाला सैनी के घर पर ही था। मौत की खबर मिलने के बाद सुब्हान का परिवार पहुंचा। उन्होंने जा कर देखा तो हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार उसके अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी। इसका सुब्हान के परिवार ने विरोध किया तो मामला बढ़ गया और दोनों पक्ष आमने सामने आ गए। दोनों ही पक्ष अपने अपने तरीके से रिज़वान का अंतिम संस्कार करना चाहते थे। मामला बढ़ने पर पुलिस तथा सिटी मजिस्ट्रेट को आला अधिकारियों के साथ हस्तक्षेप करना पड़ा। करीब दस घंटे की मशक्कत के बाद मामला सुलझा। उसे ज्वाला सैनी के घर से ही अर्थी पर ले जाया गया परंतु उस का ग़ुस्ल इस्लामी तरीके से किया गया। अल्लाह हु अकबर और घंटो की सदाओं में उसकी जनाजे की नमाज़ अदा की गई और दफन कर दिया गया परंतु दफन कब्रस्तान में नही शमशान में हुआ। माहौल इतना सौहार्दपूर्ण था कि अर्थी को एक ओर तो टीका लगाये और दूसरी ओर टोपी ओढ़े लोग कंधा दे रहे थे।

Saturday, March 17, 2018

रोहिंग्या मुसलमानों पर ज़ुल्म करने के म्यांमार के कारण

रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ चले म्यांमार सरकार के बर्बर अभियान के बारे में तो सभी जानते हैं। हाल ही में इनके बारे में नया खुलासा हुआ है। खुलासा यह हुआ है कि जब म्यांमार ने रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निकाला था तो उस वक़्त ये तर्क दिया था कि रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के नागरिक नही हैं इसलिए इन्हें देश से निकाला जा रहा है।
कुछ ही दिन पूर्व एमनेस्टी इंटरनेशनल ने म्यांमार के रखाइन प्रान्त की सेटेलाइट से ली हुई तस्वीरें जारी की थीं, इनमें दिखाया गया था कि म्यांमार के सभी इलाकों से रोहिंग्या बस्तियों का नामोनिशान मिटा दिया गया है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा ताज़ा जारी की गई तस्वीरों से पता चलता है कि रोहिंग्या बस्तियों को खत्म करने के बाद म्यांमार ने इन स्थानों पर अपने सैन्य अड्डे विकसित कर लिए हैं।
गौरतलब है कि म्यांमार सरकार ने बांग्लादेश की सरकार से वहाँ रह रहे लगभग सात लाख रोहिंग्या मुसलमानों को अगले साल अपने देश वापस लेने का समझौता किया है परंतु म्यांमार के इस तरह सैन्य अड्डे बनाने से उसकी मंशा पर संदेह होता है कि म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों को फिर वापस लेना चाहता है। इससे पहले म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। पिछले दो सालों से रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार की सरकार और सेना द्वारा सताया जा रहा था। बीते साल यह संघर्ष इतना बढ़ा कि रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार छोड़कर भागना पड़ा। लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश में शरण लेनी पड़ी और लगभग 40 हज़ार रोहिंग्या मुसलमान भारत में शरण लिए हुए हैं।
टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार एमनेस्टी इंटरनेशनल की नयी तस्वीरों से यह साबित हुआ है कि रखाइन प्रान्त का पुनर्निर्माण बहुत ही गोपनीय ढंग से किया जा रहा है। रखाइन के आखरी तीन सैन्य अड्डे इसी साल बनाए गए हैं, जबकि अभी कई सैन्य अड्डे निर्माणाधीन हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि म्यांमार सरकार द्वारा कब्ज़े में ली गई ज़मीन पर उन्ही सैन्य बलों के लिए नए अड्डे बनाए जा रहे हैं जिन्होंने मानवता के खिलाफ जा कर रोहिंग्या मुसलमानों पर ज़ुल्म ढाया था।

कौन हैं रोहिंग्या???
रोहिंग्या पश्चिमी म्यांमार के रखाइन प्रान्त में रहने वाली एक जाति है, जो धार्मिक रूप से मुसलमान हैं। ये लोग बर्मा की भाषा की जगह ज़्यादातर बंगाली भाषा बोलते हैं। ये पीढ़ियों से म्यांमार में रह रहे हैं लेकिन अब म्यांमार इनको अवैध प्रवासी मान रहा है, जो कोलोनियल शासन के दौरान म्यांमार में आ कर बस गए थे। म्यांमार के नागरिकता अधिनियम 1982 के अनुसार उन्ही रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार की नागरिकता मिल सकती है, जो ये साबित कर दें कि उनके पुर्वज 1823 से पहले से म्यांमार में रह रहे थे। इसलिए 1982 से म्यांमार ने रोहिंग्या मुसलमानों को अपना नागरिक मानने से इनकार कर दिया और उनके नागरिक अधिकार छीन लिए। तभी से रोहिंग्या मुसलमानों का सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है। म्यांमार के उनको नागरिक न मानने की वजह से उन्हें सभी तरह की सुविधाएं एवं अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। उसी वक़्त से रोहिंग्या मुसलमान अपने अधिकारों और नागिरकता को बहाल करने के लिए शांतिपूर्ण ढंग से मांग कर रहे हैं।

रोहिंग्या के विरुद्ध म्यांमार में कब परिवर्तन आए
2015 तक म्यांमार में सेना का शासन रहा है, इसके बाद 2015 में पहली बार म्यांमार में लोकतांत्रिक तरीके से सरकार बनी। सरकार की सर्वेसर्वा आंग सान सू की हैं, लेकिन नाममात्र के लिए हतिन क्याव को म्यांमार का राष्ट्रपति बना दिया गया है, क्योंकि कुछ संविधानिक प्रावधानों के चलते आंग सान सू की देश की राष्ट्रपति नही बन सकती थीं।
आंग सान सू की के सत्ता में आने के बाद देश में रोहिंग्या मुसलमानों पर संकट बढ़ गया। आंग सान सू की ने सुनियोजित तरीके से सेना द्वारा अभियान चलाकर दस लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निकाल दिया और सेना की इस कार्यवाही में हज़ारों की तादाद में रोहिंग्या मुसलमान मारे गए हैं। उनके साथ ऐसा बर्बर रवैया अपनाया गया कि जिस को देख कर किसी का भी मन विचलित हो सकता है। म्यांमार से निकाले गए रोहिंग्या
मुसलमान शरण के लिए काफी दिनों तक समुद्र में एक देश से दूसरे देश मदद मांगते रहे, परंतु लगभग सभी देशों ने अपनी सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने से मना कर दिया। सोच कर भी मन विचलित हो जाता है कि ये लोग महीनों तक नाव के सहारे समुद्र में ही रहे, इनमे से काफी की मौत भूख की वजह से भी हो चुकी है। बाद में बांग्लादेश, थाईलैंड, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया और भारत में इन्हें शरण मिली।
म्यांमार की सेना द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों पर इस कदर ज़ुल्म ढाया गया था कि संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार की सेना के इस अभियान को नस्ली सफाया बताया था।
म्यांमार की आंग सान सू की को शांति के क्षेत्र में अनेक अंतरास्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे परंतु रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ उनके इस अभियान के कारण ज़्यादातर पुरस्कार उनसे वापस ले लिए गए हैं।

Tuesday, March 13, 2018

श्रीलंका में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को बनाया निशाना

मध्य श्रीलंका के कैंडी जिले में मुस्लिम विरोधी दंगे भड़कने के बाद श्रीलंका में 10 दिन की आपातकाल की घोषणा कर दी गई थी। श्रीलंका की सरकार को यह कदम पिछले सोमवार को बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध एवं अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के बीच हुई सांम्प्रदायिक झड़पों के बाद उठाना पड़ा। श्रीलंका में सिंहली बौद्ध बहुसंख्यक तादाद में हैं, श्रीलंका में इनकी आबादी लगभग 75 प्रतिशत है जबकि मुस्लिम महज 10 प्रतिशत हैं।
इन दंगों में अब तक 2 लोगों की जान जा चुकी है, 20 गम्भीर रूप से घायल हैं, 200 से ज़्यादा मुसलमानों की दुकानों और घरों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया गया है इसके अतिरिक्त 11 मस्जिदों को पूरी तरह तोड़ दिया गया है।
क्यों भड़का दंगा
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक निजी विवाद में तीन मुस्लिम युवकों ने एक सिंहली बौद्ध की हत्या कर दी थी, जिसकी वजह से यह हिंसा फैली।
हिंसा की असली वजह
हिंसा की असली वजह मीडिया में आई ख़बरों के बिल्कुल विपरीत है। श्रीलंका में फैले मुस्लिम विरोधी दंगो की असली वजह है इसका मुख्य आरोपी। मुख्य आरोपी जिसका नाम अमित वीरासिंहें है। अमित वीरासिंहें अपनी कट्टर मुस्लिम विरोधी छवि के लिए जाना जाता है। बताया जाता है कि दंगों से पहले अमित ने मुसलमानों के खिलाफ एक भड़काऊ भाषण दिया था जो फ़ेसबुक और यूट्यूब का माध्यम से इलाके में फैल गया और यही भाषण दंगों की मुख्य वजह बना। हालांकि मुख्य आरोपी सहित 150 अन्य लोगों को हिरासत में लिया है और इसके बाद से स्तिथि नियंत्रण में है।
फ़ेसबुक और यूट्यूब पर अमित वीरासिंहें की वीडियो और पोस्ट देखने से पता चलता है कि यह दंगा पहले से प्रायोजित था। अमित वीरासिंहें श्रीलंका में मुसलमानों की बढ़ती आबादी की वजह से मुस्लिम समुदाय को अपने निशाने पर रखता था।
श्रीलंका पुलिस के अनुसार कोलंबो से 115 किमी पूर्व में कैंडी जिले में उस समय हिंसा फैली जब एक जली हुई इमारत के अवशेष से एक मुस्लिम का जला हुआ शव बरामद हुआ। यह दंगे पहले कैंडी के उदिसपुत्त्वा और टेलडेनिया में शुरू हुए और बाद में डिगाना, टेनेकुम्बरा और अन्य इलाकों में फैल गए। अब हालात 9 मार्च से काबू में हैं, इसके लिए प्रशासन को भारी मात्रा में बल तैनात करना पड़ा है।
दंगा ग्रस्त इलाकों में सोशल मीडिया को बंद कर दिया गया था, जिसे 10 मार्च से फिर बहाल कर दिया गया है।
संयुक्त राष्ट्र की कड़ी निंदा
रविवार को संयुक्त राष्ट्र ने श्रीलंका में हुए मुस्लिम विरोधी दंगो की निंदा की थी। संयुक्त राष्ट्र के राजनीतिक मामलों के अंडर जनरल सेक्रेटरी जैफरी फेल्टमैंन ने मुस्लिम विरोधी दंगो की निंदा करते हुए श्रीलंका सरकार से दंगों के आरोपियों को कानूनी दायरे में लाने को कहा है।

Thursday, March 8, 2018

आधुनिक भारत में भाजपा और उसकी राजनीति

1984 के लोकसभा चुनावों में केवल दो सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी आज देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है, अगर पार्टी के सदस्यों की संख्या को आधार माना जाए तो यह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को पीछे छोड़कर विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। भाजपा को खड़ा करने में राम जन्मभूमि आंदोलन का सबसे बड़ा योगदान रहा।
1996 में पहली बार भाजपा संसद में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी और उसने 13 दिन सरकार भी चलाई। 1998  में भाजपा की अगुवाई में NDA बना और एक साल सरकार चला सके। इसके एक साल बाद 1999 में भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत हासिल करके सत्ता में आई और अपना कार्यकाल पूर्ण किया। यह पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया।
2004 से भाजपा 10 साल संसद में मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर रही।
इसके बाद भाजपा का स्वर्णिम युग 2014 में शुरु हुआ। 2014 में भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा को जबरदस्त बहुमत मिला, इसके बाद पंजाब, दिल्ली और बिहार को छोड़कर लगभग हर राज्य में भाजपा ने सरकार बनाई।
आज भाजपा की 15 राज्यों में अपने दम पर सरकार है और 6 राज्यों में भाजपा सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार में है।
भाजपा का बढ़ता प्रभाव
यह भाजपा का प्रभाव ही है जिसकी वजह से 23 साल पुराने दुश्मन बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी को साथ आना पड़ा। 2 जून 1995 में स्टेट गेस्ट हाउस कांड से शुरु हुई दुश्मनी को 23 साल बाद भुलाना पड़ा, इनका श्रेय भाजपा के बढ़ते कदमों को ही दिया जाना चाहिए।
भाजपा के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए ही बिहार में एक दूसरे के कट्टर विरोधी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को साथ आना पड़ा तथा कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाना पड़ा।
भाजपा की बढ़ती ताकत के सामने अपने घटते कद की वजह से महाराष्ट्र में शिव सेना  को अपना दशकों पुराना गठबंधन तोड़ना पड़ा क्योंकि शिव सेना भी हिंदुत्व के नाम पर आई थी और अब इसी मुद्दे पर उसे अपना वोट बैंक भाजपा की ओर आकर्षित होता लग रहा है।
क्या कारण है भाजपा के बढ़ने के
भाजपा के इस बढ़ते हुए कद के पीछे सबसे बड़ा कारण उसकी हिंदूवादी छवि माना जाता है। हिंदूवादी छवि होने के चलते ही बहुत से हिंदूवादी संगठन जैसे बजरंग दल, हिन्दू युवा वाहिनी, गौरक्षा दल और विश्व हिंदू परिषद भाजपा के लिए जमीनी स्तर पर काम करते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पीछे से भाजपा को चलाता है। समय समय पर आरएसएस भाजपा नेताओं, मंत्रियों यहाँ तक कि प्रधानमंत्री तक को संघ के कार्यालयों में बुलाकर सरकार के कामकाज की समीक्षा करता रहता है। यही नही आरएसएस भाजपा की भावी रणनीति तथा चुनावी प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भाजपा तथा अन्य दलों में यह सबसे बड़ा अंतर है कि उनके पास इस प्रकार के जमीनी स्तर पर काम करने वाले संगठनों का अभाव है।
भाजपा की सफलता का श्रेय  उसके चुनावी प्रबंधन को भी मिलना चाहिए क्योंकि यह भाजपा का चुनावी प्रबंधन ही है जो उसने बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं की फौज तैयार कर रखी है। त्रिपुरा के चुनावों में तो भाजपा ने वोटर लिस्ट के हर एक पन्ने के लिए एक अलग टीम बना रखी थी।
इसके साथ ही भाजपा की सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भी दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री में खुद को प्रस्तुत करने की असिमित क्षमता है। उनके समर्थक उनके इस तरह दीवाने हैं कि वह जो कहते हैं लोग उसको सच मानने से रोक नही पाते। 2014 में लंबे चौड़े वादों से मिले अपार समर्थन से प्रधानमंत्री बनने के बाद, मतदाताओं की ढेरों उम्मीदों में उन्होंने खुद को दबने नही दिया। उन्होंने जनता से किये बड़े बड़े वादों को खुद के व्यक्तित्व के सामने बौना साबित कर दिया। लोग प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व के सामने उनके वादों को भूलते गए।
प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का आलम यह है कि देश इन दिनों बढ़ती महंगाई, बैंकों में घटते भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और चरमराई हुई अर्थव्यवस्था से परेशान है परंतु प्रधानमंत्री के समर्थकों को इस बात से कोई परेशानी नही है, उनके लिए प्रधानमंत्री आज भी वही 2014 वाले हीरो हैं जो 2014 में हर साल 1 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा करके आये थे।
कहा जाता है कि जब ताकत बढ़ती है तो घमंड अपने आप आ जाता है। आज कल ऐसा ही कुछ भाजपा में भी देखने को मिल रहा है। इसे घमंड कहें, सत्ता का लोभ कहें, लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कहें या राजनीतिक निपुणता, चुनावी प्रबंधन।
सत्ता पाने के लिए भाजपा साम, दाम, दंड व भेद सभी नियमों का पालन कर रही है। जहाँ बहुमत मिलता है वहाँ तो सरकार बना ही रही है परंतु जहाँ पार्टी बुरी तरह पिछड़ रही है जैसे मेघालय में पार्टी ने महज 2 सीटें लाकर भी सरकार बना ली।
गोआ में भाजपा को 13 सीटें मिली थी जबकि प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस 17 सीटें लेकर भी भाजपा की रणनीति के आगे हार गई और सरकार नही बना पायी ऐसा ही मणिपुर में हुआ कांग्रेस 28 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी थी परंतु भाजपा 21 सीटें जीतकर ही सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है। इन दोनों राज्यों में हैरान करने वाली बात यह है कि राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए पहले बड़े दल को न्योता नही दिया।

Thursday, March 1, 2018

गरीब जनता के अमीर सांसद

कैबिनेट ने एक बार फिर सांसदों के भत्ते बढ़ाने का फ़ैसला किया है। संसदीय मामलों के मंत्रालय ने निर्वाचन क्षेत्र भत्ते को बढ़ा कर 45000 रूपए से 70000 रुपए कर दिया है, फर्नीचर भत्ते को बढ़ा कर 75000 रुपये से 1 लाख रुपये कर दिया है साथ ही कार्यालय खर्च के लिए मिलने वाले भत्ते को 45000 से बढ़ाकर 60000 रुपये कर दिया गया है।
केन्द्र सरकार एक सांसद पर 2•7 लाख रुपये खर्च करती थी परंतु इस बढ़ोतरी के बाद अब यह खर्च 3•2 लाख रुपये हो जाएगा।
सांसदों को मिलने वाली सुविधाओं को सांसद एवं स्वंय सरकार कम मान रही थी इसलिए उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री एवं गोरखपुर के पूर्व सांसद योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में सांसदों का वेतन निर्धारण करने के लिए एक कमेटी गठित की गई थी। जिसने अपनी 64 सिफारिशें केंद सरकार को सोंपी थी। जिसमें सांसदों का वर्तमान वेतन और पेंशन दोगुना करने के साथ ही भत्तों में बढ़ोतरी की सिफारिश भी की गई थी। हालांकि सरकार ने इनमें से ज़्यादातर सिफारिशों को नामंजूर कर दिया परंतु कुछ भत्तों को बढ़ाकर सांसदों को मिलने वाले वेतन (वेतन एवं भत्ते) को बढ़ा कर 2•7 लाख रुपये से 3•2 लाख रुपये कर दिया।
आइये विस्तार से जानते हैं कि हमारे सांसदों को कितनी सैलरी ओर भत्ते मिलतें हैं
सांसदों को उनका वेतन एवं भत्ते मेम्बर ऑफ पार्लियामेंट एक्ट 1954 सैलरी, अलाउंस और पेंशन के तहत दिया जाता है। इस एक्ट के तहत इसके नियम समय समय पर बदले भी जा सकते हैं।
लोकसभा एवं राज्यसभा के सदस्यों को प्रति माह 50000 रुपए का वेतन मिलता है। इसके अतिरिक्त संसद सत्र के दौरान 2000 रुपए दैनिक भत्ता भी मिलता है।
सांसदों को 45000 रुपये महीना संविधानिक भत्ता भी मिलता है।
ऑफिस भत्ते के नाम पर हर सांसद को 45000 रुपए प्रति माह मिलते थे जो अब बढ़कर 60000 रुपए प्रति माह हो गए हैं। इसमे 20000 रुपए स्टेशनरी एवं पोस्ट आइटम्स के लिए और 40000 रुपए सांसद को अपने सहायक के वेतन के लिए मिलते हैं।
यात्रा भत्ता
संसद सत्र, मीटिंग या ड्यूटी से जुड़ी किसी भी मीटिंग को अटेन्ड करने के लिए सांसद को यात्रा भत्ता भी दिया जाता है।
सड़क यात्रा के दौरान 16 रुपए प्रति किलोमीटर के हिसाब से यात्रा भत्ता मिलता है। इसके अतिरिक्त हर महीने एक फ्री फर्स्ट क्लास एसी ट्रैन का पास और एक फर्स्ट क्लास और एक सेकेंड क्लास का किराया भी इन्हें दिया जाता है। हवाई यात्रा के दौरान सांसद को किराए का 25% ही देना पड़ता है तथा अपने साथ पति या पत्नी को भी ले जा सकते हैं। इस तरह की 34 हवाई यात्राएं एक सांसद साल भर में कर सकता है।
टेलीफोन भत्ता
एक सांसद को तीन टेलीफोन रखने जा अधिकार है। इन तीनों टेलीफोनों का खर्चा सरकार खुद उठती है। इन फोन में से हर फोन से सांसद 50000 कॉल प्रति वर्ष मुफ्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त हर सांसद को एक MTNL का तथा एक अन्य प्राइवेट कंपनी का मोबाइल फोन भी मिलता है, जिसमे MTNL या BSNL की 3G सेवा भी मुफ्त है।
बिजली-पानी
प्रत्येक सांसद को प्रति वर्ष 4000 किलो लीटर पानी और 50000 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाती है। अगर वह एक साल में इसका उपयोग नही कर पाता तो यह अगले साल के कोटे में जुड़ कर मिलती है।
स्वास्थ्य संबंधी सुविधायें
प्रत्येक सांसद को स्वास्थ्य के नाम पर हर वो सुविधा मिलती है, जो केंद्र सरकार स्वास्थ्य स्कीम के तहत प्रथम श्रेणी के अधिकारियों को दी जाती है।
आवास
प्रत्येक सांसद को सरकार दिल्ली में सरकार के गेस्ट हाउस या होटल या सरकारी बंगलों रहने की व्यवस्था करती है। यहाँ पर सांसद सपरिवार रह सकता है। यहां का सभी खर्च सरकार उठती है।
सांसदों को हर तीन माह में घर के पर्दे और कपड़े धुलवाने के लिए 50000 रुपये मिलते हैं।
द हिन्दू की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार एक सांसद पर 2•7 लाख रुपए खर्च प्रति माह करती थी परंतु इस बढ़ोतरी के बाद यह बढ़कर 3•2 लाख रुपए प्रति माह हो गया।
इनकम टैक्स

इतना वेतन और भत्ते मिलने के बाद भी इनको किसी तरह का कोई भी कर नही भरना पड़ता अर्थात इनका पूरा वेतन एवं भत्ते पूरी तरह से आयकर मुक्त हैं।
पूर्व सांसदों को मिलने वाली सुविधाएं
पूर्व सांसद को 20000 रुपए मासिक पेंशन दी जाती है। सांसदों को डबल पेंशन लेने का भी हक़ है, जैसे कोई सांसद जो पहले विधायक भी रहा हो, उसे दोनों पेंशन मिलती हैं। पूर्व सांसद का देहांत हो जाने पर भी उसके परिजनों को आधी पेंशन मिलती है।
पूर्व सांसद को भी फ्री एसी फर्स्ट क्लास में असीमित रेल यात्रा करने की छूट हैं।
देश मे इस बढ़ोतरी का विरोध भी देखा जा रहा है। निजी संस्था ADR एवं लोक प्रहरी ने इस सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके इस पर रोक लगाने की मांग की है।
संसद की आदर्श कैंटीन
सांसदों का वेतन तीन लाख से ऊपर हो गया है इसके बावजूद उन्हें संसद की कैंटीन से मिलने वाले खाने पर बड़ी छूट मिलती थी।
इस कैंटीन में मटन करी महज 20 रुपए में, चिकन करी 29 रुपए में, कॉफी 4 रुपए में, मसाला डोसा 6 रुपए में, शाकाहारी थाली 18 रुपए में और मांसाहारी थाली 33 रुपए में मिल जाती थी। सरकार इस कैंटीन को 16 करोड़ रुपये की सब्सिडी देती थी।
कैंटीन में सब्सिडी वाली कीमतों पर खाद्य सामग्री मिलने को लेकर समय समय पर विरोध भी होते रहे हैं, इसकी वजह से लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को कीमतों में बदलाव करने का आदेश देना पड़ा। लोकसभा सचिवालय ने इस पर समीक्षा करके कीमतों में बदलाव किया। अब यह कैंटीन नो प्रॉफिट नो लॉस के आधार पर चल रही है।

Thursday, February 22, 2018

Azad, the father of Indian Institute of Technology

Maulana Abul Kalam Azad was born in 11 November 1888 at Mecca. He was an Indian scholar and the senior leader on Indian National Congress.
After independence, he became the first Education Minister in Indian Government.
His contribution to establishing the education foundation in India is recognized by celebrating his birthday as National Education Day throughout the country.
Maulana Azad was one of the main organizers of the Dharasana Satyagrah in 1931. He served as Indian National Congress President from 1940 to 1945 when the Quit India rebellion was launched. Maulana Azad sent to prison with many congress leader.
As Indian Education Minister, Maulana Azad oversaw the establishment of a national education system with free primary education. He is also established Indian Institute of Technology and University Grant commission. At 22nd of February in 1958, the founder of Indian Technology Education was no more.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के जनक अब्दुल कलाम आजाद

अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवंबर 1988 को हुआ था। यह एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और साथ ही कवि, लेखक और पत्रकार भी थे। भारत की आजादी की लड़ाई में इन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने हमेशा हिंदू मुस्लिम एकता का संदेश दिया और यह हमेशा अलग पाकिस्तान निर्माण के खिलाफ थे। 1940 और 1945 के बीच भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। अंग्रेजों के विरोधी होने के चलते इनको 3 साल जेल में भी बिताने पड़े। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले से 1952 में सांसद चुने गए और देश के प्रथम शिक्षा मंत्री भी बने। यह आधुनिक शिक्षा वादी सर सैयद अहमद के विचारों से काफी प्रभावित थे। 1912 में अल हिलाल नाम से एक उर्दू पत्रिका प्रारंभ की।  इन का उद्देश्य मुसलमान युवकों को क्रांतिकारी आंदोलन के लिए उत्साहित करना और साथ ही हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ाना था। देश के शिक्षा मंत्री बनने के बाद संस्कृति को विकसित करने के लिए संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी तथा ललित कला अकादमी जैसे संस्थान स्थापित किए। देश  में तकनीकी शिक्षा प्रारंभ करने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है क्योंकि इन्ही के प्रयासों की बदौलत देश में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जैसे संस्थान बन सके हैं।यह जलियांवाला बाग हत्याकांड का विरोध करने वाले नेताओं में से प्रमुख थे। इसके साथ ही अबुल कलाम आजाद ने  गांधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में कदम से कदम मिला था। आज ही के दिन 22 फरवरी 1958 को अंग्रेजों का विरोध करने वाली यह आवाज हमेशा के लिए शांत हो गई।

Monday, February 19, 2018

पाकिस्तानी निर्भया को महज डेढ़ माह में न्याय, भारतीय न्यायव्यवस्था पर एक बार फिर सवालिया निशान?

पाकिस्तान की अदालत ने आठ बर्षीय बच्ची ज़ैनब अंसारी से रेप और हत्या के मामले में दोषी 23 साल के इमरान अली को फाँसी की सज़ा सुनाई। सिर्फ चार दिन की सुनवाई के दौरान यह सजा दी गई। यह पाकिस्तान के इतिहास में सबसे छोटा ट्रायल रहा। जज साजिद हुसैन ने बच्ची के साथ रेप करने, अगवा करने, हत्या तथा अप्राकृतिक कृत्य करने के लिए इमरान अली को फाँसी के साथ 32 लाख पाकिस्तानी रुपयों का जुर्माना भी लगाया। राजनीतिक रूप से अस्थिर पाकिस्तान जैसे देश में इस तरह का काम होना प्रशंसा के योग्य है।
भारत में भी निर्भया गैंग रेप मामले में पूरे देश में विरोध प्रदर्शन होने के बावजूद फैसला आने में करीब नौ माह का समय लग था।
क्या था ज़ैनब मामला
आठ बर्षीय ज़ैनब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के कसूर जिले की रहने वाली थी। 4 जनवरी 2018 को वह पढ़ने के लिए अपने घर से निकली, इसके बाद वह गुम हो गई। गुम होने के बाद उसके परिजनों ने पुलिस को खबर दी। 9 जनवरी को ज़ैनब का शव कूड़े के ढेर में पड़ा मिला। शव की जांच करने से पता कि उसके साथ रेप और अप्राकर्तिक कृत्य किया गया था। इसके बाद कसूर सहित पाकिस्तान के सभी बड़े शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए । गुस्साए नागरिकों ने कई पुलिस थानों और नेताओं के घरों में आग लगा दी थी, पुलिस की कार्यवाही में दो प्रदर्शकारियों की मौत भी हो गई। पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से आरोपी को ढूंढ निकाला और पाकिस्तानी अदालत ने महज चार ट्रायल के दौरान ही उसे फांसी की सज़ा सुनाई।
खैर पाकिस्तान में जो हुआ वो गलत था लेकिन कानून ने पीड़िता को महज डेढ़ माह में न्याय दिलाकर प्रशंसा योग्य कार्य किया है।
अब मन में सवाल यह उठता है कि क्या हमारे देश की अदालतों में इतनी क्षमता है जो वह भी पीड़ितों को जल्दी न्याय दे सकें और मुकदमों का जल्द से जल्द निपटारा कर सकें।
आइये थोड़ा भारतीय न्यायव्यवस्था को जानने का प्रयास करते हैं
भारतीय न्यायिक व्यवस्था विश्व की प्राचीन न्याय व्यवस्थाओं में से एक है परन्तु भारतीय अदालतों में मुकदमों का किस तरह अम्बार लगा पड़ा है, यह भी एक खुला सत्य है।
भारतीय अदालतों पर मुकदमों का इतना भार है कि खुद सुप्रीम कोर्ट को 12 जनवरी 2012 को कहना पड़ा कि देश में लोगों को देर से न्याय मिलने के कारण लोगों का न्याय व्यवस्था पर भरोसा तेज़ी से कम हो रहा है।
एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2013 तक भारतीय अदालतों में 32 मिलियन मुकदमें पेंडिंग थे।
जनता को जल्दी न्याय देने के लिए दसवें वित्तीय आयोग ने देश में 1734 फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाने की सिफारिश की। आयोग की सिफारिश पर वर्ष 2000 में 1734 फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए गए। जिन्होंने शुरुआती 14 सालों में लगभग 50 लाख मुकदमों का निपटारा किया। शुरुआत में यह एक सीमित समय के लिए बनाए गए थे मगर दिसंबर 2012 के निर्भया कांड के बाद इन्हें फिर शुरू किया गया। फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के बाद ईवनिंग कोर्ट और मोर्निंग कोर्ट भी शुरू किए गए परन्तु जिस मकसद से इन्हें शुरू किया गया था वह दूर की कौड़ी नज़र आता है।
फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में भी अब मिकदमों का अंबार लगने लगा, अकेली दिल्ली में 2014 तक 1374 मुकदमें फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में पेंडिंग थे।
मुकदमों के पेंडिंग होने में व्यवसायिक मामलों का होना भी है।
सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रीसर्च एंड ब्रिटिश डिप्टी हाई कमीशन के अनुसार 16884 व्यवसायिक मामले हाई कोर्ट में पेंडिंग हैं, जिनमे 5865 मामले अकेले मद्रास हाईकोर्ट में हैं।
मुकदमों के पेंडिंग होने में जजों की कमी भी मुख्य कारण है क्योंकि भारत मे 10 लाख लोगों पर महज 10•5 जज हैं जबकि अंतराष्ट्रीय मानकों के अनुसार यह अनुपात 50 होना चाहिये था। इसके अतिरिक्त भारत के बजट में ज्यूडिशरी को बजट का महज 0•2% भाग ही मिल पाता है जिससे इतने बड़े सिस्टम को नही चलाया जा सकता।
इसके अतिरिक्त भ्रष्टाचार भी मुकदमों के लाम्बित होने की बड़ी वजह है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार भारत की न्यायिक प्रणाली में भ्रष्टाचार भी मौजूद है। यह मुख्य रूप से मामलों के निपटारे में देरी करने के रूप में है।
भारतीय अदालतों में मुकदमे इतनी देरी से निपटते है कि चारा घोटाला जो 1996 में उजागर हुआ था उसका फैसला आने में 21 साल लग गए यही नही 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दौरान संजय दत्त के अवैध हथियार रखने के मामले में 20 साल ट्रायल के बाद 2013 में फैसला आया।

Saturday, February 17, 2018

Indian Farmer vs Indian Foreigner

आज के मेरे ब्लॉग का शीर्षक भारतीय किसान बनाम भारतीय विदेशी थोड़ा अजीब और अटपटा सा है, इसका सही और पूर्ण रूप से अर्थ जानने के लिए आपको ब्लॉग पूरा पढ़ना होगा।
देश में आज की तारीख में अगर किसी व्यक्ति की सबसे अधिक चर्चा है तो वो हैं नीरव मोदी, चर्चा भी क्यों न हो नीरव मोदी कोई साधारण व्यक्ति थोड़ी न है और न ही उनके साधारण व्यक्तियों से संबंध हैं। हम भी नीरव मोदी की चर्चा करेंगें परंतु उससे पहले कुछ और भी है जिसपर चर्चा की जा सकती है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2014 में देश में 5650 किसानों ने आत्महत्या की। आत्महत्या की यह दर वर्ष 2004 में उच्चतम स्तर पर थी उस वर्ष देश में 18241 किसानों ने आत्महत्या की थी।
देश में होने वाली आत्महत्याओं में 11.2 प्रतिशत किसान होते हैं।  ऐसे कौन से कारण है जिनकी वजह से किसानों को आत्महत्या करनी पड़ती हैं, इन कारणों पर नजर डाली जाए तो इनमें मानसून फेल, कर्ज़ का भारी बोझ और कुछ सरकारी नीतियां अहम है।
वर्ष 2017 में महाराष्ट्र , आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ , उड़ीसा तथा झारखंड किसानों की आत्महत्या के मामले में अग्रणी राज्य रहे।
भारत की 70% जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से  कृषि पर निर्भर है परंतु कोई आयोग ऐसा नहीं बन सका जो किसानों की आत्महत्याओं का मुख्य कारण जानने का प्रयास करता अगर कोई आयोग बना भी तो उस की सिफारिश  कभी लागू नहीं हो पायीं ।
2014 का एक सर्वे कहता है कि कुछ किसान नकद फसलें लगाते हैं जैसे कॉफी, कॉटन और गन्ना, यहां पर मिलें उनका माल तो खरीद लेती हैं परंतु भुगतान का पता नही कब हो, कभी कभी तो कई वर्ष बीत जाने के बाद भी भुगतान नही हो पाता, इसको सम्पन्न एवं बड़े किसान तो झेल लेतें हैं परंतु छोटे एवं मझोले किसान जो कर्ज़ लेकर फसल बोते हैं वो नही झेल पाते और कर्ज़ में डूब कर आत्महत्या कर लेतें हैं।
डाउन टू अर्थ के अनुसार वर्ष 2015 में देश मे हर घंटे में एक किसान ने आत्महत्या की है।
कृषि आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था का  मुख्य स्रोत है , यह भारत की जीडीपी में 14% भागीदारी करता है।  किसानों की इस तरह और इस तादाद में होने वाली आत्महत्या यह इशारा करती हैं कि सरकार ने अर्थव्यवस्था के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को किस तरह नजरअंदाज कर रखा है।
अब आइये बात करते हैं नीरव मोदी की,
नीरव मोदी पंजाब नेशनल बैंक के 11400 करोड़ रुपये लेकर फरार हो गया, विदेश मंत्रालय को पता नही की वो किस देश में है। नीरव मोदी ने बैंक के उच्च अधिकारियों की मदद से 2011 में फर्जीवाड़ा शुरू किया।  नीरव मोदी ने मिलीभगत से 293 एलओयू जारी करा  लिए थे इससे विदेश में ₹11450 करोड़ का ट्रांजैक्शन किया। इस में अहम बात यह है कि यह मामला जुलाई 2016 से प्रधानमंत्री कार्यालय के संज्ञान में था। इस पर इलाहाबाद बैंक के पूर्व निदेशक दिनेश दुबे  का कहना है यह घोटाला यूपीए के कार्यकाल में शुरू हुआ था और एनडीए के समय में बढ़कर 50 गुना हो गया। उन्होंने वर्ष 2013 में गीतांजलि समूह को लोन देने पर आपत्ति जताई थी परंतु दबाव के चलते उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। अब मुद्दा यह नहीं है कि नीरव मोदी को कैसे पकड़ा जाए और कैसे इस रकम को वापस लाया जाए क्योंकि यह घोटाला यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों के कार्यकाल में हुआ है इसलिए दोनों पार्टियों का बस एक मकसद है कि किस तरह घोटाले के इस दाग को दूसरे पर मढे। नीरव मोदी के बाद एक नाम और मेरे मस्तिष्क में आता है वो है विजय माल्या का। विजय माल्या का भी यही मामला है उन्होंने भी देश की 17 बैंकों से 9000 करोड़ कर्ज़ लिया और 2 मार्च 2016 को लंदन भाग गया। विजय माल्या की भी पकड़ भारतीय राजनीति में अच्छी रही है वह दो बार राज्य सभा सांसद बन चुके हैं, मजे की बात ये है कि राजनीतिक रूप से एक दूसरे की कट्टर विरोधी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों का समर्थन विजय माल्या को है, क्योंकि वर्ष 2002 में कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर के सहयोग से विजय माल्या राज्यसभा सांसद बने तो अगली बार वर्ष 2010 में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल सेक्युलर के सहयोग से राज्यसभा सांसद बने।
अब सवाल ये उठता है कि कहाँ ये अरबपति व्यापारी और कहाँ भूखे नंगे किसान, इनमें क्या समानता हो सकती है ? हमने इन दोनों का ज़िक्र एक साथ क्यों किया ? गौर करें तो इनमें एक जो सबसे बड़ी समानता है वो ये है इनका बैंक से लोन लेना। ये बड़े अरबपति व्यापारी बैंक से अरबों का लोन लेते हैं वो भी बहुत मामूली ब्याज पर जबकि किसान को लाख दो लाख का लोन मिलता है । ये व्यापारी लोन जमा न होने की स्तिथि में बैंकों को टालते हैं और जब स्तिथि काबू से बाहर हो जाती है तो विदेश जा कर आराम से ऐश करते हैं जबकि किसान अगर लोन न चुकाने की स्तिथि में आ जाये तो बैंक वाले उसके घर नोटिस पर नोटिस भेजते रहते हैं,  जब तक वो बैंक का कर्ज न चुका दे या परेशान हो कर आत्महत्या न कर ले तब तक ये सिलसिला चलता रहता है। किसान जो कि छोटा लोन लेता है परंतु उसे दुनिया छोड़कर जाना पड़ जाता है परंतु इन बड़े व्यापरियों को जिनको बैंक घर जा कर लोन देकर आती, लोन न चुकाने की स्तिथि ने सिर्फ देश छोड़ना पड़ता है। जब ये लोग एक बार देश छोड़ दें तो सरकार चाह कर भी इनका कुछ नही बिगाड़ पाती क्योंकि वहाँ हमारे कानून लागू नही होते । विदेश जाकर ये भारतीय हम भारतीयों के लिए विदेशी भारतीय हो जातें हैं। चूँकि हमने इस ब्लॉग में भारतीय किसान और भारतीय भगोड़े व्यापारियों की चर्चा की है इसीलिये इसका शीर्षक भारतीय किसान बनाम भारतीय विदेशी रखा था। ब्लॉग कैसा लगा कमेंट करके जरूर बताएं।

Tuesday, February 13, 2018

Fiaz Ahmad Birth Anniversary

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है
तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा
बोल कि जाँ अब तक् तेरी है
देख के आहंगर की दुकाँ में
तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन
खुलने लगे क़ुफ़्फ़लों के दहाने
फैला हर एक ज़न्जीर का दामन
बोल ये थोड़ा वक़्त बहोत है
जिस्म-ओ-ज़बाँ की मौत से पहले
बोल कि सच ज़िंदा है अब तक
बोल जो कुछ कहने है कह ले

Monday, February 12, 2018

तीन तलाक और भारत की समस्याएं

विश्व बैंक के ताजा आँकड़ों के अनुसार भारत विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। हमनें छठे स्थान पर पहुँचने के लिए फ्रांस को पीछे ध...