पाकिस्तान की अदालत ने आठ बर्षीय बच्ची ज़ैनब अंसारी से रेप और हत्या के मामले में दोषी 23 साल के इमरान अली को फाँसी की सज़ा सुनाई। सिर्फ चार दिन की सुनवाई के दौरान यह सजा दी गई। यह पाकिस्तान के इतिहास में सबसे छोटा ट्रायल रहा। जज साजिद हुसैन ने बच्ची के साथ रेप करने, अगवा करने, हत्या तथा अप्राकृतिक कृत्य करने के लिए इमरान अली को फाँसी के साथ 32 लाख पाकिस्तानी रुपयों का जुर्माना भी लगाया। राजनीतिक रूप से अस्थिर पाकिस्तान जैसे देश में इस तरह का काम होना प्रशंसा के योग्य है।
भारत में भी निर्भया गैंग रेप मामले में पूरे देश में विरोध प्रदर्शन होने के बावजूद फैसला आने में करीब नौ माह का समय लग था।
क्या था ज़ैनब मामला
आठ बर्षीय ज़ैनब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के कसूर जिले की रहने वाली थी। 4 जनवरी 2018 को वह पढ़ने के लिए अपने घर से निकली, इसके बाद वह गुम हो गई। गुम होने के बाद उसके परिजनों ने पुलिस को खबर दी। 9 जनवरी को ज़ैनब का शव कूड़े के ढेर में पड़ा मिला। शव की जांच करने से पता कि उसके साथ रेप और अप्राकर्तिक कृत्य किया गया था। इसके बाद कसूर सहित पाकिस्तान के सभी बड़े शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए । गुस्साए नागरिकों ने कई पुलिस थानों और नेताओं के घरों में आग लगा दी थी, पुलिस की कार्यवाही में दो प्रदर्शकारियों की मौत भी हो गई। पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से आरोपी को ढूंढ निकाला और पाकिस्तानी अदालत ने महज चार ट्रायल के दौरान ही उसे फांसी की सज़ा सुनाई।
खैर पाकिस्तान में जो हुआ वो गलत था लेकिन कानून ने पीड़िता को महज डेढ़ माह में न्याय दिलाकर प्रशंसा योग्य कार्य किया है।
अब मन में सवाल यह उठता है कि क्या हमारे देश की अदालतों में इतनी क्षमता है जो वह भी पीड़ितों को जल्दी न्याय दे सकें और मुकदमों का जल्द से जल्द निपटारा कर सकें।
आइये थोड़ा भारतीय न्यायव्यवस्था को जानने का प्रयास करते हैं
भारतीय न्यायिक व्यवस्था विश्व की प्राचीन न्याय व्यवस्थाओं में से एक है परन्तु भारतीय अदालतों में मुकदमों का किस तरह अम्बार लगा पड़ा है, यह भी एक खुला सत्य है।
भारतीय अदालतों पर मुकदमों का इतना भार है कि खुद सुप्रीम कोर्ट को 12 जनवरी 2012 को कहना पड़ा कि देश में लोगों को देर से न्याय मिलने के कारण लोगों का न्याय व्यवस्था पर भरोसा तेज़ी से कम हो रहा है।
एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2013 तक भारतीय अदालतों में 32 मिलियन मुकदमें पेंडिंग थे।
जनता को जल्दी न्याय देने के लिए दसवें वित्तीय आयोग ने देश में 1734 फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाने की सिफारिश की। आयोग की सिफारिश पर वर्ष 2000 में 1734 फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए गए। जिन्होंने शुरुआती 14 सालों में लगभग 50 लाख मुकदमों का निपटारा किया। शुरुआत में यह एक सीमित समय के लिए बनाए गए थे मगर दिसंबर 2012 के निर्भया कांड के बाद इन्हें फिर शुरू किया गया। फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के बाद ईवनिंग कोर्ट और मोर्निंग कोर्ट भी शुरू किए गए परन्तु जिस मकसद से इन्हें शुरू किया गया था वह दूर की कौड़ी नज़र आता है।
फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में भी अब मिकदमों का अंबार लगने लगा, अकेली दिल्ली में 2014 तक 1374 मुकदमें फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में पेंडिंग थे।
मुकदमों के पेंडिंग होने में व्यवसायिक मामलों का होना भी है।
सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रीसर्च एंड ब्रिटिश डिप्टी हाई कमीशन के अनुसार 16884 व्यवसायिक मामले हाई कोर्ट में पेंडिंग हैं, जिनमे 5865 मामले अकेले मद्रास हाईकोर्ट में हैं।
मुकदमों के पेंडिंग होने में जजों की कमी भी मुख्य कारण है क्योंकि भारत मे 10 लाख लोगों पर महज 10•5 जज हैं जबकि अंतराष्ट्रीय मानकों के अनुसार यह अनुपात 50 होना चाहिये था। इसके अतिरिक्त भारत के बजट में ज्यूडिशरी को बजट का महज 0•2% भाग ही मिल पाता है जिससे इतने बड़े सिस्टम को नही चलाया जा सकता।
इसके अतिरिक्त भ्रष्टाचार भी मुकदमों के लाम्बित होने की बड़ी वजह है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार भारत की न्यायिक प्रणाली में भ्रष्टाचार भी मौजूद है। यह मुख्य रूप से मामलों के निपटारे में देरी करने के रूप में है।
भारतीय अदालतों में मुकदमे इतनी देरी से निपटते है कि चारा घोटाला जो 1996 में उजागर हुआ था उसका फैसला आने में 21 साल लग गए यही नही 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दौरान संजय दत्त के अवैध हथियार रखने के मामले में 20 साल ट्रायल के बाद 2013 में फैसला आया।
भारत में भी निर्भया गैंग रेप मामले में पूरे देश में विरोध प्रदर्शन होने के बावजूद फैसला आने में करीब नौ माह का समय लग था।
क्या था ज़ैनब मामला
आठ बर्षीय ज़ैनब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के कसूर जिले की रहने वाली थी। 4 जनवरी 2018 को वह पढ़ने के लिए अपने घर से निकली, इसके बाद वह गुम हो गई। गुम होने के बाद उसके परिजनों ने पुलिस को खबर दी। 9 जनवरी को ज़ैनब का शव कूड़े के ढेर में पड़ा मिला। शव की जांच करने से पता कि उसके साथ रेप और अप्राकर्तिक कृत्य किया गया था। इसके बाद कसूर सहित पाकिस्तान के सभी बड़े शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए । गुस्साए नागरिकों ने कई पुलिस थानों और नेताओं के घरों में आग लगा दी थी, पुलिस की कार्यवाही में दो प्रदर्शकारियों की मौत भी हो गई। पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से आरोपी को ढूंढ निकाला और पाकिस्तानी अदालत ने महज चार ट्रायल के दौरान ही उसे फांसी की सज़ा सुनाई।
खैर पाकिस्तान में जो हुआ वो गलत था लेकिन कानून ने पीड़िता को महज डेढ़ माह में न्याय दिलाकर प्रशंसा योग्य कार्य किया है।
अब मन में सवाल यह उठता है कि क्या हमारे देश की अदालतों में इतनी क्षमता है जो वह भी पीड़ितों को जल्दी न्याय दे सकें और मुकदमों का जल्द से जल्द निपटारा कर सकें।
आइये थोड़ा भारतीय न्यायव्यवस्था को जानने का प्रयास करते हैं
भारतीय न्यायिक व्यवस्था विश्व की प्राचीन न्याय व्यवस्थाओं में से एक है परन्तु भारतीय अदालतों में मुकदमों का किस तरह अम्बार लगा पड़ा है, यह भी एक खुला सत्य है।
भारतीय अदालतों पर मुकदमों का इतना भार है कि खुद सुप्रीम कोर्ट को 12 जनवरी 2012 को कहना पड़ा कि देश में लोगों को देर से न्याय मिलने के कारण लोगों का न्याय व्यवस्था पर भरोसा तेज़ी से कम हो रहा है।
एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2013 तक भारतीय अदालतों में 32 मिलियन मुकदमें पेंडिंग थे।
जनता को जल्दी न्याय देने के लिए दसवें वित्तीय आयोग ने देश में 1734 फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाने की सिफारिश की। आयोग की सिफारिश पर वर्ष 2000 में 1734 फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए गए। जिन्होंने शुरुआती 14 सालों में लगभग 50 लाख मुकदमों का निपटारा किया। शुरुआत में यह एक सीमित समय के लिए बनाए गए थे मगर दिसंबर 2012 के निर्भया कांड के बाद इन्हें फिर शुरू किया गया। फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के बाद ईवनिंग कोर्ट और मोर्निंग कोर्ट भी शुरू किए गए परन्तु जिस मकसद से इन्हें शुरू किया गया था वह दूर की कौड़ी नज़र आता है।
फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में भी अब मिकदमों का अंबार लगने लगा, अकेली दिल्ली में 2014 तक 1374 मुकदमें फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में पेंडिंग थे।
मुकदमों के पेंडिंग होने में व्यवसायिक मामलों का होना भी है।
सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रीसर्च एंड ब्रिटिश डिप्टी हाई कमीशन के अनुसार 16884 व्यवसायिक मामले हाई कोर्ट में पेंडिंग हैं, जिनमे 5865 मामले अकेले मद्रास हाईकोर्ट में हैं।
मुकदमों के पेंडिंग होने में जजों की कमी भी मुख्य कारण है क्योंकि भारत मे 10 लाख लोगों पर महज 10•5 जज हैं जबकि अंतराष्ट्रीय मानकों के अनुसार यह अनुपात 50 होना चाहिये था। इसके अतिरिक्त भारत के बजट में ज्यूडिशरी को बजट का महज 0•2% भाग ही मिल पाता है जिससे इतने बड़े सिस्टम को नही चलाया जा सकता।
इसके अतिरिक्त भ्रष्टाचार भी मुकदमों के लाम्बित होने की बड़ी वजह है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार भारत की न्यायिक प्रणाली में भ्रष्टाचार भी मौजूद है। यह मुख्य रूप से मामलों के निपटारे में देरी करने के रूप में है।
भारतीय अदालतों में मुकदमे इतनी देरी से निपटते है कि चारा घोटाला जो 1996 में उजागर हुआ था उसका फैसला आने में 21 साल लग गए यही नही 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दौरान संजय दत्त के अवैध हथियार रखने के मामले में 20 साल ट्रायल के बाद 2013 में फैसला आया।
Very good
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