Thursday, March 22, 2018

एकता की नई मिसाल, चमन उर्फ़ रिज़वान

हिंसा के इस दौर में भी देश में कहीं न कहीं से एकता और सौहार्द की मिसालें सामने आती रहती हैं। एकता की इन्ही मिसालों से देश में गंगा जमुनी तहजीब बनी हुई है। अभी कुछ ही दिनों पहले होली पर लखनऊ में होली के जुलूस की वजह से मुस्लिम समाज के लोगों ने जुमे की नमाज़ का वक़्त थोड़ा आगे बढ़ा लिया था ताकि होली का जुलूस शांतिपूर्ण ढंग से पूरा हो सके।
अब नई मिसाल उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से सामने आई है। यहाँ अजीबोगरीब मामला सामने आया, इस मामले ने संत कबीर दास जी की याद दिला दी।
मुरादाबाद में मानसिक रूप से कमजोर एक युवक की मृत्यु हो गई। मृत्यु होने के बाद हिन्दू और मुसलमान दोनों समाज के लोग उसका अपने धार्मिक तरीकों से अंतिम सं
स्कार करना चाहते थे। मामला इतना बढ़ गया कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दखल देना पड़ा। बड़ी मशक्कत के बाद 10 घण्टे बाद मामला सुलझा और उस युवक का दोनों धर्मो के मिले जुले तरीकों से अंतिम संस्कार किया गया।
क्या था पूरा मामला
2014 में मुरादाबाद शहर की ईदगाह के पास एक मानसिक रूप से कमजोर युवक मिला था। युवक का पता चलने पर शहर के मोहल्ला डबल फाटक निवासी ज्वाला सैनी ने उस युवक को अपना बेटा चमन बताया जो 2009 में घर से लापता हो गया था परंतु इस बात पर विवाद तब बढ़ा जब शहर के ही मोहल्ला असालतपुर निवासी सुब्हान ने युवक को अपना भाई रिज़वान बताया। इस मामलें में उस वक़्त काफी विवाद हुआ था परंतु पुलिस ने स्थायी समाधान खोजने की जगह दोनों पक्षों में समझौता करा दिया कि ज्वाला सैनी और सुब्हान दोनों के परिवार संयुक्त रूप से उस युवक की देखभाल करेंगे। तभी से चमन उर्फ रिज़वान दोनों परिवारों में रह रहा था। चमन उर्फ रिज़वान की वजह से दोनों परिवारों के बीच भी एक संम्बंध बन गया था।
अब चमन उर्फ रिज़वान काफी दिनों आए बीमार चल रहा था, बीमारी की वजह से ही उसकी मौत हो गई। जब मौत हुई तो वह ज्वाला सैनी के घर पर ही था। मौत की खबर मिलने के बाद सुब्हान का परिवार पहुंचा। उन्होंने जा कर देखा तो हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार उसके अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी। इसका सुब्हान के परिवार ने विरोध किया तो मामला बढ़ गया और दोनों पक्ष आमने सामने आ गए। दोनों ही पक्ष अपने अपने तरीके से रिज़वान का अंतिम संस्कार करना चाहते थे। मामला बढ़ने पर पुलिस तथा सिटी मजिस्ट्रेट को आला अधिकारियों के साथ हस्तक्षेप करना पड़ा। करीब दस घंटे की मशक्कत के बाद मामला सुलझा। उसे ज्वाला सैनी के घर से ही अर्थी पर ले जाया गया परंतु उस का ग़ुस्ल इस्लामी तरीके से किया गया। अल्लाह हु अकबर और घंटो की सदाओं में उसकी जनाजे की नमाज़ अदा की गई और दफन कर दिया गया परंतु दफन कब्रस्तान में नही शमशान में हुआ। माहौल इतना सौहार्दपूर्ण था कि अर्थी को एक ओर तो टीका लगाये और दूसरी ओर टोपी ओढ़े लोग कंधा दे रहे थे।

Saturday, March 17, 2018

रोहिंग्या मुसलमानों पर ज़ुल्म करने के म्यांमार के कारण

रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ चले म्यांमार सरकार के बर्बर अभियान के बारे में तो सभी जानते हैं। हाल ही में इनके बारे में नया खुलासा हुआ है। खुलासा यह हुआ है कि जब म्यांमार ने रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निकाला था तो उस वक़्त ये तर्क दिया था कि रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के नागरिक नही हैं इसलिए इन्हें देश से निकाला जा रहा है।
कुछ ही दिन पूर्व एमनेस्टी इंटरनेशनल ने म्यांमार के रखाइन प्रान्त की सेटेलाइट से ली हुई तस्वीरें जारी की थीं, इनमें दिखाया गया था कि म्यांमार के सभी इलाकों से रोहिंग्या बस्तियों का नामोनिशान मिटा दिया गया है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा ताज़ा जारी की गई तस्वीरों से पता चलता है कि रोहिंग्या बस्तियों को खत्म करने के बाद म्यांमार ने इन स्थानों पर अपने सैन्य अड्डे विकसित कर लिए हैं।
गौरतलब है कि म्यांमार सरकार ने बांग्लादेश की सरकार से वहाँ रह रहे लगभग सात लाख रोहिंग्या मुसलमानों को अगले साल अपने देश वापस लेने का समझौता किया है परंतु म्यांमार के इस तरह सैन्य अड्डे बनाने से उसकी मंशा पर संदेह होता है कि म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों को फिर वापस लेना चाहता है। इससे पहले म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। पिछले दो सालों से रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार की सरकार और सेना द्वारा सताया जा रहा था। बीते साल यह संघर्ष इतना बढ़ा कि रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार छोड़कर भागना पड़ा। लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश में शरण लेनी पड़ी और लगभग 40 हज़ार रोहिंग्या मुसलमान भारत में शरण लिए हुए हैं।
टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के अनुसार एमनेस्टी इंटरनेशनल की नयी तस्वीरों से यह साबित हुआ है कि रखाइन प्रान्त का पुनर्निर्माण बहुत ही गोपनीय ढंग से किया जा रहा है। रखाइन के आखरी तीन सैन्य अड्डे इसी साल बनाए गए हैं, जबकि अभी कई सैन्य अड्डे निर्माणाधीन हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि म्यांमार सरकार द्वारा कब्ज़े में ली गई ज़मीन पर उन्ही सैन्य बलों के लिए नए अड्डे बनाए जा रहे हैं जिन्होंने मानवता के खिलाफ जा कर रोहिंग्या मुसलमानों पर ज़ुल्म ढाया था।

कौन हैं रोहिंग्या???
रोहिंग्या पश्चिमी म्यांमार के रखाइन प्रान्त में रहने वाली एक जाति है, जो धार्मिक रूप से मुसलमान हैं। ये लोग बर्मा की भाषा की जगह ज़्यादातर बंगाली भाषा बोलते हैं। ये पीढ़ियों से म्यांमार में रह रहे हैं लेकिन अब म्यांमार इनको अवैध प्रवासी मान रहा है, जो कोलोनियल शासन के दौरान म्यांमार में आ कर बस गए थे। म्यांमार के नागरिकता अधिनियम 1982 के अनुसार उन्ही रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार की नागरिकता मिल सकती है, जो ये साबित कर दें कि उनके पुर्वज 1823 से पहले से म्यांमार में रह रहे थे। इसलिए 1982 से म्यांमार ने रोहिंग्या मुसलमानों को अपना नागरिक मानने से इनकार कर दिया और उनके नागरिक अधिकार छीन लिए। तभी से रोहिंग्या मुसलमानों का सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है। म्यांमार के उनको नागरिक न मानने की वजह से उन्हें सभी तरह की सुविधाएं एवं अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। उसी वक़्त से रोहिंग्या मुसलमान अपने अधिकारों और नागिरकता को बहाल करने के लिए शांतिपूर्ण ढंग से मांग कर रहे हैं।

रोहिंग्या के विरुद्ध म्यांमार में कब परिवर्तन आए
2015 तक म्यांमार में सेना का शासन रहा है, इसके बाद 2015 में पहली बार म्यांमार में लोकतांत्रिक तरीके से सरकार बनी। सरकार की सर्वेसर्वा आंग सान सू की हैं, लेकिन नाममात्र के लिए हतिन क्याव को म्यांमार का राष्ट्रपति बना दिया गया है, क्योंकि कुछ संविधानिक प्रावधानों के चलते आंग सान सू की देश की राष्ट्रपति नही बन सकती थीं।
आंग सान सू की के सत्ता में आने के बाद देश में रोहिंग्या मुसलमानों पर संकट बढ़ गया। आंग सान सू की ने सुनियोजित तरीके से सेना द्वारा अभियान चलाकर दस लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निकाल दिया और सेना की इस कार्यवाही में हज़ारों की तादाद में रोहिंग्या मुसलमान मारे गए हैं। उनके साथ ऐसा बर्बर रवैया अपनाया गया कि जिस को देख कर किसी का भी मन विचलित हो सकता है। म्यांमार से निकाले गए रोहिंग्या
मुसलमान शरण के लिए काफी दिनों तक समुद्र में एक देश से दूसरे देश मदद मांगते रहे, परंतु लगभग सभी देशों ने अपनी सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने से मना कर दिया। सोच कर भी मन विचलित हो जाता है कि ये लोग महीनों तक नाव के सहारे समुद्र में ही रहे, इनमे से काफी की मौत भूख की वजह से भी हो चुकी है। बाद में बांग्लादेश, थाईलैंड, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मलेशिया और भारत में इन्हें शरण मिली।
म्यांमार की सेना द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों पर इस कदर ज़ुल्म ढाया गया था कि संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार की सेना के इस अभियान को नस्ली सफाया बताया था।
म्यांमार की आंग सान सू की को शांति के क्षेत्र में अनेक अंतरास्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे परंतु रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ उनके इस अभियान के कारण ज़्यादातर पुरस्कार उनसे वापस ले लिए गए हैं।

Tuesday, March 13, 2018

श्रीलंका में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को बनाया निशाना

मध्य श्रीलंका के कैंडी जिले में मुस्लिम विरोधी दंगे भड़कने के बाद श्रीलंका में 10 दिन की आपातकाल की घोषणा कर दी गई थी। श्रीलंका की सरकार को यह कदम पिछले सोमवार को बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध एवं अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के बीच हुई सांम्प्रदायिक झड़पों के बाद उठाना पड़ा। श्रीलंका में सिंहली बौद्ध बहुसंख्यक तादाद में हैं, श्रीलंका में इनकी आबादी लगभग 75 प्रतिशत है जबकि मुस्लिम महज 10 प्रतिशत हैं।
इन दंगों में अब तक 2 लोगों की जान जा चुकी है, 20 गम्भीर रूप से घायल हैं, 200 से ज़्यादा मुसलमानों की दुकानों और घरों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया गया है इसके अतिरिक्त 11 मस्जिदों को पूरी तरह तोड़ दिया गया है।
क्यों भड़का दंगा
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक निजी विवाद में तीन मुस्लिम युवकों ने एक सिंहली बौद्ध की हत्या कर दी थी, जिसकी वजह से यह हिंसा फैली।
हिंसा की असली वजह
हिंसा की असली वजह मीडिया में आई ख़बरों के बिल्कुल विपरीत है। श्रीलंका में फैले मुस्लिम विरोधी दंगो की असली वजह है इसका मुख्य आरोपी। मुख्य आरोपी जिसका नाम अमित वीरासिंहें है। अमित वीरासिंहें अपनी कट्टर मुस्लिम विरोधी छवि के लिए जाना जाता है। बताया जाता है कि दंगों से पहले अमित ने मुसलमानों के खिलाफ एक भड़काऊ भाषण दिया था जो फ़ेसबुक और यूट्यूब का माध्यम से इलाके में फैल गया और यही भाषण दंगों की मुख्य वजह बना। हालांकि मुख्य आरोपी सहित 150 अन्य लोगों को हिरासत में लिया है और इसके बाद से स्तिथि नियंत्रण में है।
फ़ेसबुक और यूट्यूब पर अमित वीरासिंहें की वीडियो और पोस्ट देखने से पता चलता है कि यह दंगा पहले से प्रायोजित था। अमित वीरासिंहें श्रीलंका में मुसलमानों की बढ़ती आबादी की वजह से मुस्लिम समुदाय को अपने निशाने पर रखता था।
श्रीलंका पुलिस के अनुसार कोलंबो से 115 किमी पूर्व में कैंडी जिले में उस समय हिंसा फैली जब एक जली हुई इमारत के अवशेष से एक मुस्लिम का जला हुआ शव बरामद हुआ। यह दंगे पहले कैंडी के उदिसपुत्त्वा और टेलडेनिया में शुरू हुए और बाद में डिगाना, टेनेकुम्बरा और अन्य इलाकों में फैल गए। अब हालात 9 मार्च से काबू में हैं, इसके लिए प्रशासन को भारी मात्रा में बल तैनात करना पड़ा है।
दंगा ग्रस्त इलाकों में सोशल मीडिया को बंद कर दिया गया था, जिसे 10 मार्च से फिर बहाल कर दिया गया है।
संयुक्त राष्ट्र की कड़ी निंदा
रविवार को संयुक्त राष्ट्र ने श्रीलंका में हुए मुस्लिम विरोधी दंगो की निंदा की थी। संयुक्त राष्ट्र के राजनीतिक मामलों के अंडर जनरल सेक्रेटरी जैफरी फेल्टमैंन ने मुस्लिम विरोधी दंगो की निंदा करते हुए श्रीलंका सरकार से दंगों के आरोपियों को कानूनी दायरे में लाने को कहा है।

Thursday, March 8, 2018

आधुनिक भारत में भाजपा और उसकी राजनीति

1984 के लोकसभा चुनावों में केवल दो सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी आज देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है, अगर पार्टी के सदस्यों की संख्या को आधार माना जाए तो यह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को पीछे छोड़कर विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। भाजपा को खड़ा करने में राम जन्मभूमि आंदोलन का सबसे बड़ा योगदान रहा।
1996 में पहली बार भाजपा संसद में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी और उसने 13 दिन सरकार भी चलाई। 1998  में भाजपा की अगुवाई में NDA बना और एक साल सरकार चला सके। इसके एक साल बाद 1999 में भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत हासिल करके सत्ता में आई और अपना कार्यकाल पूर्ण किया। यह पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया।
2004 से भाजपा 10 साल संसद में मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर रही।
इसके बाद भाजपा का स्वर्णिम युग 2014 में शुरु हुआ। 2014 में भाजपा ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा को जबरदस्त बहुमत मिला, इसके बाद पंजाब, दिल्ली और बिहार को छोड़कर लगभग हर राज्य में भाजपा ने सरकार बनाई।
आज भाजपा की 15 राज्यों में अपने दम पर सरकार है और 6 राज्यों में भाजपा सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार में है।
भाजपा का बढ़ता प्रभाव
यह भाजपा का प्रभाव ही है जिसकी वजह से 23 साल पुराने दुश्मन बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी को साथ आना पड़ा। 2 जून 1995 में स्टेट गेस्ट हाउस कांड से शुरु हुई दुश्मनी को 23 साल बाद भुलाना पड़ा, इनका श्रेय भाजपा के बढ़ते कदमों को ही दिया जाना चाहिए।
भाजपा के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए ही बिहार में एक दूसरे के कट्टर विरोधी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को साथ आना पड़ा तथा कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाना पड़ा।
भाजपा की बढ़ती ताकत के सामने अपने घटते कद की वजह से महाराष्ट्र में शिव सेना  को अपना दशकों पुराना गठबंधन तोड़ना पड़ा क्योंकि शिव सेना भी हिंदुत्व के नाम पर आई थी और अब इसी मुद्दे पर उसे अपना वोट बैंक भाजपा की ओर आकर्षित होता लग रहा है।
क्या कारण है भाजपा के बढ़ने के
भाजपा के इस बढ़ते हुए कद के पीछे सबसे बड़ा कारण उसकी हिंदूवादी छवि माना जाता है। हिंदूवादी छवि होने के चलते ही बहुत से हिंदूवादी संगठन जैसे बजरंग दल, हिन्दू युवा वाहिनी, गौरक्षा दल और विश्व हिंदू परिषद भाजपा के लिए जमीनी स्तर पर काम करते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पीछे से भाजपा को चलाता है। समय समय पर आरएसएस भाजपा नेताओं, मंत्रियों यहाँ तक कि प्रधानमंत्री तक को संघ के कार्यालयों में बुलाकर सरकार के कामकाज की समीक्षा करता रहता है। यही नही आरएसएस भाजपा की भावी रणनीति तथा चुनावी प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भाजपा तथा अन्य दलों में यह सबसे बड़ा अंतर है कि उनके पास इस प्रकार के जमीनी स्तर पर काम करने वाले संगठनों का अभाव है।
भाजपा की सफलता का श्रेय  उसके चुनावी प्रबंधन को भी मिलना चाहिए क्योंकि यह भाजपा का चुनावी प्रबंधन ही है जो उसने बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं की फौज तैयार कर रखी है। त्रिपुरा के चुनावों में तो भाजपा ने वोटर लिस्ट के हर एक पन्ने के लिए एक अलग टीम बना रखी थी।
इसके साथ ही भाजपा की सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भी दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री में खुद को प्रस्तुत करने की असिमित क्षमता है। उनके समर्थक उनके इस तरह दीवाने हैं कि वह जो कहते हैं लोग उसको सच मानने से रोक नही पाते। 2014 में लंबे चौड़े वादों से मिले अपार समर्थन से प्रधानमंत्री बनने के बाद, मतदाताओं की ढेरों उम्मीदों में उन्होंने खुद को दबने नही दिया। उन्होंने जनता से किये बड़े बड़े वादों को खुद के व्यक्तित्व के सामने बौना साबित कर दिया। लोग प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व के सामने उनके वादों को भूलते गए।
प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का आलम यह है कि देश इन दिनों बढ़ती महंगाई, बैंकों में घटते भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और चरमराई हुई अर्थव्यवस्था से परेशान है परंतु प्रधानमंत्री के समर्थकों को इस बात से कोई परेशानी नही है, उनके लिए प्रधानमंत्री आज भी वही 2014 वाले हीरो हैं जो 2014 में हर साल 1 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा करके आये थे।
कहा जाता है कि जब ताकत बढ़ती है तो घमंड अपने आप आ जाता है। आज कल ऐसा ही कुछ भाजपा में भी देखने को मिल रहा है। इसे घमंड कहें, सत्ता का लोभ कहें, लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कहें या राजनीतिक निपुणता, चुनावी प्रबंधन।
सत्ता पाने के लिए भाजपा साम, दाम, दंड व भेद सभी नियमों का पालन कर रही है। जहाँ बहुमत मिलता है वहाँ तो सरकार बना ही रही है परंतु जहाँ पार्टी बुरी तरह पिछड़ रही है जैसे मेघालय में पार्टी ने महज 2 सीटें लाकर भी सरकार बना ली।
गोआ में भाजपा को 13 सीटें मिली थी जबकि प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस 17 सीटें लेकर भी भाजपा की रणनीति के आगे हार गई और सरकार नही बना पायी ऐसा ही मणिपुर में हुआ कांग्रेस 28 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी थी परंतु भाजपा 21 सीटें जीतकर ही सरकार बनाने में कामयाब हो जाती है। इन दोनों राज्यों में हैरान करने वाली बात यह है कि राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए पहले बड़े दल को न्योता नही दिया।

Thursday, March 1, 2018

गरीब जनता के अमीर सांसद

कैबिनेट ने एक बार फिर सांसदों के भत्ते बढ़ाने का फ़ैसला किया है। संसदीय मामलों के मंत्रालय ने निर्वाचन क्षेत्र भत्ते को बढ़ा कर 45000 रूपए से 70000 रुपए कर दिया है, फर्नीचर भत्ते को बढ़ा कर 75000 रुपये से 1 लाख रुपये कर दिया है साथ ही कार्यालय खर्च के लिए मिलने वाले भत्ते को 45000 से बढ़ाकर 60000 रुपये कर दिया गया है।
केन्द्र सरकार एक सांसद पर 2•7 लाख रुपये खर्च करती थी परंतु इस बढ़ोतरी के बाद अब यह खर्च 3•2 लाख रुपये हो जाएगा।
सांसदों को मिलने वाली सुविधाओं को सांसद एवं स्वंय सरकार कम मान रही थी इसलिए उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री एवं गोरखपुर के पूर्व सांसद योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में सांसदों का वेतन निर्धारण करने के लिए एक कमेटी गठित की गई थी। जिसने अपनी 64 सिफारिशें केंद सरकार को सोंपी थी। जिसमें सांसदों का वर्तमान वेतन और पेंशन दोगुना करने के साथ ही भत्तों में बढ़ोतरी की सिफारिश भी की गई थी। हालांकि सरकार ने इनमें से ज़्यादातर सिफारिशों को नामंजूर कर दिया परंतु कुछ भत्तों को बढ़ाकर सांसदों को मिलने वाले वेतन (वेतन एवं भत्ते) को बढ़ा कर 2•7 लाख रुपये से 3•2 लाख रुपये कर दिया।
आइये विस्तार से जानते हैं कि हमारे सांसदों को कितनी सैलरी ओर भत्ते मिलतें हैं
सांसदों को उनका वेतन एवं भत्ते मेम्बर ऑफ पार्लियामेंट एक्ट 1954 सैलरी, अलाउंस और पेंशन के तहत दिया जाता है। इस एक्ट के तहत इसके नियम समय समय पर बदले भी जा सकते हैं।
लोकसभा एवं राज्यसभा के सदस्यों को प्रति माह 50000 रुपए का वेतन मिलता है। इसके अतिरिक्त संसद सत्र के दौरान 2000 रुपए दैनिक भत्ता भी मिलता है।
सांसदों को 45000 रुपये महीना संविधानिक भत्ता भी मिलता है।
ऑफिस भत्ते के नाम पर हर सांसद को 45000 रुपए प्रति माह मिलते थे जो अब बढ़कर 60000 रुपए प्रति माह हो गए हैं। इसमे 20000 रुपए स्टेशनरी एवं पोस्ट आइटम्स के लिए और 40000 रुपए सांसद को अपने सहायक के वेतन के लिए मिलते हैं।
यात्रा भत्ता
संसद सत्र, मीटिंग या ड्यूटी से जुड़ी किसी भी मीटिंग को अटेन्ड करने के लिए सांसद को यात्रा भत्ता भी दिया जाता है।
सड़क यात्रा के दौरान 16 रुपए प्रति किलोमीटर के हिसाब से यात्रा भत्ता मिलता है। इसके अतिरिक्त हर महीने एक फ्री फर्स्ट क्लास एसी ट्रैन का पास और एक फर्स्ट क्लास और एक सेकेंड क्लास का किराया भी इन्हें दिया जाता है। हवाई यात्रा के दौरान सांसद को किराए का 25% ही देना पड़ता है तथा अपने साथ पति या पत्नी को भी ले जा सकते हैं। इस तरह की 34 हवाई यात्राएं एक सांसद साल भर में कर सकता है।
टेलीफोन भत्ता
एक सांसद को तीन टेलीफोन रखने जा अधिकार है। इन तीनों टेलीफोनों का खर्चा सरकार खुद उठती है। इन फोन में से हर फोन से सांसद 50000 कॉल प्रति वर्ष मुफ्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त हर सांसद को एक MTNL का तथा एक अन्य प्राइवेट कंपनी का मोबाइल फोन भी मिलता है, जिसमे MTNL या BSNL की 3G सेवा भी मुफ्त है।
बिजली-पानी
प्रत्येक सांसद को प्रति वर्ष 4000 किलो लीटर पानी और 50000 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाती है। अगर वह एक साल में इसका उपयोग नही कर पाता तो यह अगले साल के कोटे में जुड़ कर मिलती है।
स्वास्थ्य संबंधी सुविधायें
प्रत्येक सांसद को स्वास्थ्य के नाम पर हर वो सुविधा मिलती है, जो केंद्र सरकार स्वास्थ्य स्कीम के तहत प्रथम श्रेणी के अधिकारियों को दी जाती है।
आवास
प्रत्येक सांसद को सरकार दिल्ली में सरकार के गेस्ट हाउस या होटल या सरकारी बंगलों रहने की व्यवस्था करती है। यहाँ पर सांसद सपरिवार रह सकता है। यहां का सभी खर्च सरकार उठती है।
सांसदों को हर तीन माह में घर के पर्दे और कपड़े धुलवाने के लिए 50000 रुपये मिलते हैं।
द हिन्दू की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार एक सांसद पर 2•7 लाख रुपए खर्च प्रति माह करती थी परंतु इस बढ़ोतरी के बाद यह बढ़कर 3•2 लाख रुपए प्रति माह हो गया।
इनकम टैक्स

इतना वेतन और भत्ते मिलने के बाद भी इनको किसी तरह का कोई भी कर नही भरना पड़ता अर्थात इनका पूरा वेतन एवं भत्ते पूरी तरह से आयकर मुक्त हैं।
पूर्व सांसदों को मिलने वाली सुविधाएं
पूर्व सांसद को 20000 रुपए मासिक पेंशन दी जाती है। सांसदों को डबल पेंशन लेने का भी हक़ है, जैसे कोई सांसद जो पहले विधायक भी रहा हो, उसे दोनों पेंशन मिलती हैं। पूर्व सांसद का देहांत हो जाने पर भी उसके परिजनों को आधी पेंशन मिलती है।
पूर्व सांसद को भी फ्री एसी फर्स्ट क्लास में असीमित रेल यात्रा करने की छूट हैं।
देश मे इस बढ़ोतरी का विरोध भी देखा जा रहा है। निजी संस्था ADR एवं लोक प्रहरी ने इस सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके इस पर रोक लगाने की मांग की है।
संसद की आदर्श कैंटीन
सांसदों का वेतन तीन लाख से ऊपर हो गया है इसके बावजूद उन्हें संसद की कैंटीन से मिलने वाले खाने पर बड़ी छूट मिलती थी।
इस कैंटीन में मटन करी महज 20 रुपए में, चिकन करी 29 रुपए में, कॉफी 4 रुपए में, मसाला डोसा 6 रुपए में, शाकाहारी थाली 18 रुपए में और मांसाहारी थाली 33 रुपए में मिल जाती थी। सरकार इस कैंटीन को 16 करोड़ रुपये की सब्सिडी देती थी।
कैंटीन में सब्सिडी वाली कीमतों पर खाद्य सामग्री मिलने को लेकर समय समय पर विरोध भी होते रहे हैं, इसकी वजह से लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को कीमतों में बदलाव करने का आदेश देना पड़ा। लोकसभा सचिवालय ने इस पर समीक्षा करके कीमतों में बदलाव किया। अब यह कैंटीन नो प्रॉफिट नो लॉस के आधार पर चल रही है।

तीन तलाक और भारत की समस्याएं

विश्व बैंक के ताजा आँकड़ों के अनुसार भारत विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। हमनें छठे स्थान पर पहुँचने के लिए फ्रांस को पीछे ध...