Saturday, February 17, 2018

Indian Farmer vs Indian Foreigner

आज के मेरे ब्लॉग का शीर्षक भारतीय किसान बनाम भारतीय विदेशी थोड़ा अजीब और अटपटा सा है, इसका सही और पूर्ण रूप से अर्थ जानने के लिए आपको ब्लॉग पूरा पढ़ना होगा।
देश में आज की तारीख में अगर किसी व्यक्ति की सबसे अधिक चर्चा है तो वो हैं नीरव मोदी, चर्चा भी क्यों न हो नीरव मोदी कोई साधारण व्यक्ति थोड़ी न है और न ही उनके साधारण व्यक्तियों से संबंध हैं। हम भी नीरव मोदी की चर्चा करेंगें परंतु उससे पहले कुछ और भी है जिसपर चर्चा की जा सकती है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2014 में देश में 5650 किसानों ने आत्महत्या की। आत्महत्या की यह दर वर्ष 2004 में उच्चतम स्तर पर थी उस वर्ष देश में 18241 किसानों ने आत्महत्या की थी।
देश में होने वाली आत्महत्याओं में 11.2 प्रतिशत किसान होते हैं।  ऐसे कौन से कारण है जिनकी वजह से किसानों को आत्महत्या करनी पड़ती हैं, इन कारणों पर नजर डाली जाए तो इनमें मानसून फेल, कर्ज़ का भारी बोझ और कुछ सरकारी नीतियां अहम है।
वर्ष 2017 में महाराष्ट्र , आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ , उड़ीसा तथा झारखंड किसानों की आत्महत्या के मामले में अग्रणी राज्य रहे।
भारत की 70% जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से  कृषि पर निर्भर है परंतु कोई आयोग ऐसा नहीं बन सका जो किसानों की आत्महत्याओं का मुख्य कारण जानने का प्रयास करता अगर कोई आयोग बना भी तो उस की सिफारिश  कभी लागू नहीं हो पायीं ।
2014 का एक सर्वे कहता है कि कुछ किसान नकद फसलें लगाते हैं जैसे कॉफी, कॉटन और गन्ना, यहां पर मिलें उनका माल तो खरीद लेती हैं परंतु भुगतान का पता नही कब हो, कभी कभी तो कई वर्ष बीत जाने के बाद भी भुगतान नही हो पाता, इसको सम्पन्न एवं बड़े किसान तो झेल लेतें हैं परंतु छोटे एवं मझोले किसान जो कर्ज़ लेकर फसल बोते हैं वो नही झेल पाते और कर्ज़ में डूब कर आत्महत्या कर लेतें हैं।
डाउन टू अर्थ के अनुसार वर्ष 2015 में देश मे हर घंटे में एक किसान ने आत्महत्या की है।
कृषि आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था का  मुख्य स्रोत है , यह भारत की जीडीपी में 14% भागीदारी करता है।  किसानों की इस तरह और इस तादाद में होने वाली आत्महत्या यह इशारा करती हैं कि सरकार ने अर्थव्यवस्था के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को किस तरह नजरअंदाज कर रखा है।
अब आइये बात करते हैं नीरव मोदी की,
नीरव मोदी पंजाब नेशनल बैंक के 11400 करोड़ रुपये लेकर फरार हो गया, विदेश मंत्रालय को पता नही की वो किस देश में है। नीरव मोदी ने बैंक के उच्च अधिकारियों की मदद से 2011 में फर्जीवाड़ा शुरू किया।  नीरव मोदी ने मिलीभगत से 293 एलओयू जारी करा  लिए थे इससे विदेश में ₹11450 करोड़ का ट्रांजैक्शन किया। इस में अहम बात यह है कि यह मामला जुलाई 2016 से प्रधानमंत्री कार्यालय के संज्ञान में था। इस पर इलाहाबाद बैंक के पूर्व निदेशक दिनेश दुबे  का कहना है यह घोटाला यूपीए के कार्यकाल में शुरू हुआ था और एनडीए के समय में बढ़कर 50 गुना हो गया। उन्होंने वर्ष 2013 में गीतांजलि समूह को लोन देने पर आपत्ति जताई थी परंतु दबाव के चलते उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। अब मुद्दा यह नहीं है कि नीरव मोदी को कैसे पकड़ा जाए और कैसे इस रकम को वापस लाया जाए क्योंकि यह घोटाला यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों के कार्यकाल में हुआ है इसलिए दोनों पार्टियों का बस एक मकसद है कि किस तरह घोटाले के इस दाग को दूसरे पर मढे। नीरव मोदी के बाद एक नाम और मेरे मस्तिष्क में आता है वो है विजय माल्या का। विजय माल्या का भी यही मामला है उन्होंने भी देश की 17 बैंकों से 9000 करोड़ कर्ज़ लिया और 2 मार्च 2016 को लंदन भाग गया। विजय माल्या की भी पकड़ भारतीय राजनीति में अच्छी रही है वह दो बार राज्य सभा सांसद बन चुके हैं, मजे की बात ये है कि राजनीतिक रूप से एक दूसरे की कट्टर विरोधी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों का समर्थन विजय माल्या को है, क्योंकि वर्ष 2002 में कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर के सहयोग से विजय माल्या राज्यसभा सांसद बने तो अगली बार वर्ष 2010 में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल सेक्युलर के सहयोग से राज्यसभा सांसद बने।
अब सवाल ये उठता है कि कहाँ ये अरबपति व्यापारी और कहाँ भूखे नंगे किसान, इनमें क्या समानता हो सकती है ? हमने इन दोनों का ज़िक्र एक साथ क्यों किया ? गौर करें तो इनमें एक जो सबसे बड़ी समानता है वो ये है इनका बैंक से लोन लेना। ये बड़े अरबपति व्यापारी बैंक से अरबों का लोन लेते हैं वो भी बहुत मामूली ब्याज पर जबकि किसान को लाख दो लाख का लोन मिलता है । ये व्यापारी लोन जमा न होने की स्तिथि में बैंकों को टालते हैं और जब स्तिथि काबू से बाहर हो जाती है तो विदेश जा कर आराम से ऐश करते हैं जबकि किसान अगर लोन न चुकाने की स्तिथि में आ जाये तो बैंक वाले उसके घर नोटिस पर नोटिस भेजते रहते हैं,  जब तक वो बैंक का कर्ज न चुका दे या परेशान हो कर आत्महत्या न कर ले तब तक ये सिलसिला चलता रहता है। किसान जो कि छोटा लोन लेता है परंतु उसे दुनिया छोड़कर जाना पड़ जाता है परंतु इन बड़े व्यापरियों को जिनको बैंक घर जा कर लोन देकर आती, लोन न चुकाने की स्तिथि ने सिर्फ देश छोड़ना पड़ता है। जब ये लोग एक बार देश छोड़ दें तो सरकार चाह कर भी इनका कुछ नही बिगाड़ पाती क्योंकि वहाँ हमारे कानून लागू नही होते । विदेश जाकर ये भारतीय हम भारतीयों के लिए विदेशी भारतीय हो जातें हैं। चूँकि हमने इस ब्लॉग में भारतीय किसान और भारतीय भगोड़े व्यापारियों की चर्चा की है इसीलिये इसका शीर्षक भारतीय किसान बनाम भारतीय विदेशी रखा था। ब्लॉग कैसा लगा कमेंट करके जरूर बताएं।

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